मन का आपा खोने का क्या आशय है
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कबीर जी द्वारा रचित यह दोहा बताता है कि मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो दूसरों को तो सुनने में अच्छी लगे स्वयं के मन को भी शीतल करे ।
भगवान द्वारा दी गई वाणी अगर मीठी , और शीतल हो तो सुनने वाले और बोलने वाले दोनों का मन प्रसन्न रहता है ।
कठोर और कटु वचन ऐसे तीर के समान है जो तरकस से निकल कर फिर वापिस नहीं आते और ह्रदय को कचोटते रहते हैं।
अतः हमेशा मीठे , कोमल वचन बोलने चाहिए ।
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man ka apa khone ka arth hota hai prem, karuna aadi ki bhavna khona
(reference- kabir ki sakhi class 10)
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