Hindi, asked by mohitchillar44566, 2 months ago



मन काँचे नाचे वृथा साँचे राँचे राम

Answers

Answered by ankitabareth200787
0

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के मध्य युगीन कविता ‘बिहारी के दोहे’ से लिया गया है जिसके कवि बिहारीलाल हैं।

संदर्भ : बिहारी जी इस नीतिपरक दोहे के माध्यम से सांसारिक ज्ञान को सामने ला देते हैं और कहते हैं कि बाहरी दिखावा और पाखण्ड व्यर्थ है, क्योंकि भगवान भाव से प्रसन्न होते हैं, पाखण्ड से नहीं।

भाव स्पष्टीकरण : प्रस्तुत दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि बाहरी दिखावा, पाखण्ड व्यर्थ है। भगवान भाव से प्रसन्न होते हैं, पाखण्ड से नहीं। जप करना, माला पहनना, छापा और तिलक लगाना इन सब प्रकार के पाखण्डों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। बल्कि जब तक तेरा मन कच्चा है, तब तक तेरा यह सारा नाचा अर्थात् पाखण्ड व्यर्थ है, इसलिए व्यक्ति को विषय-वासनाएँ मिटाकर और बाहरी आडम्बरों को त्यागकर सच्चे मन से ईश्वर की उपासना करनी चाहिए क्योंकि राम अर्थात् भगवान तो सच्ची भावना से प्रसन्न होते हैं।

विशेष : भाषा – ब्रज और संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग। भाव – भक्ति और नीति परक।

Similar questions