मन के हारे हार है मन के जीते जीत विषय पर लेख लिखो
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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है।
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मन के हारे हार है मन के जीते जीत
अथात इस संसार में दु:ख और सुख तो सभी पर पडते है इसलिए मनुष्य को अपना पौरूष नहीं छोडना चाहिए, कयोंकि हार और जीत मन के मानने और ना मानने पर भी निभर
करती हैं जय - पराजय, यश -अपयश दु: ख और हानि - लाभ सब मन के कारण ही है अत : जैसा मनुष्य मन से सोचेगा -
वैसा ही बनेगा
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