मन के हरे हार मन के जीते जीत पर अनुचेद
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मन के हारे हार मन के जीते जीत
यदि मनुष्य के मन में दुर्बलता है तो वह अपने जीवन में सफल नहीं होता. वह आसान काम करने में भी घबराता है. वहीँ मजबूत मनःस्थिति वाला व्यक्ति कठिन से कठिन कार्यो को भी हँसते हुए निपटा देता है.
मनुष्य का मन प्रायः चंचल हुआ करता है . मनुष्य के मन में कभी अच्छे तो कभी बुरे, कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक, सैकड़ों तरह के विचार आते जाते रहते हैं. यदि मनुष्य अपने मन को अपने वश नहीं कर पाता तो मन उसे अच्छे कार्यों के मनन चिंतन की बजाय व्यर्थ कार्यों के सोच विचार में ज्यादा उलझा देता है. इसलिए व्यक्ति प्रायः अपने आप में तनाव ग्रस्त तथा चिडचिडेपन का अनुभव करता है. व्यर्थ या फ़ालतू बातों के सोच विचार में मन की अनमोल शक्ति नष्ट हो जाती है. व्यक्ति शांति की बजाय अशांति और तनाव अनुभव करता है.
जबकि समर्थ उअर भले कार्यों के बारे में सोचने से मानव के मन में उर्जा व्यर्थ नहीं होती. वह समस्त उर्जा एकत्रित होकर मनुष्य के मन की एक बहुत बड़ी शक्ति बन जाती है.
मनुष्य किसी भी सफलता को पाने के पूर्व हार क्यों जाता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसका मन हार जाता है. इस कारण वह सफलता पाने का पूरा प्रयास नहीं कर पाता है. ठीक उसी तरह से जैसे एथलीट अपने लक्ष्य के निशान से पहले ही हांफने लगता है.
कहा गया है मन के हारे हार मन के जीते जीत. अर्थात दुनिया में वाही व्यक्ति विजयी होता है जिसने अपने मन को अपने आप को जीत लिया है. जो अपने मन को जीत नहीं पाता, वह अपनी इन्द्रियों का गुलाम बन जाता है, और वह सफलता से दूर चला जाता है।