मन की मां ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै उधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन-मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहती हुती गुहारी जितहिं तैं, उत तें धार बही।
'सूरदास अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लही। in which language it is wrote
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व्याख्या
श्री कृष्ण के मित्र उद्धव जी जब कृष्ण का संदेश सुनाते हैं कि वे नहीं आ सकते , तब गोपियों का हृदय मचल उठता है और अधीर होकर उद्धव से कहती हैं-
हे उद्धव जी! हमारे मन की बात तो हमारे मन में ही रह गई। हम कृष्ण से बहुत कुछ कहना चाह रही थीं, पर अब हम कैसे कह पाएँगी। हे उद्धव जी! जो बातें हमें केवल और केवल श्री कृष्ण से कहनी है, उन बातों को किसी और को कहकर संदेश नहीं भेज सकती। श्री कृष्ण ने जाते समय कहा था कि काम समाप्त कर वे जल्दी ही लौटेंगे। हमारा तन और मन उनके वियोग में दुखी है, फिर भी हम उनके वापसी के समय का इंतजार कर रही थीं । मन में बस एक आशा थी कि वे आएँगे तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएँगे। परन्तु; श्री कृष्ण ने हमारे लिए ज्ञान-योग का संदेश भेजकर हमें और भी दुखी कर दिया। हम तो पहले ही दुखी थीं, अब इस संदेश ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। हे उद्धव जी! हमारे लिए यह विपदा की घड़ी है,ऐसे में हर कोई अपने रक्षक को आवाज लगाता है। पर, हमारा दुर्भाग्य देखिए कि ऐसी घड़ी में जिसे हम पुकारना चाहती हैं, वही हमारे दुख का कारण है। हे उद्धव जी! प्रेम की मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए ,पर श्री कृष्ण ने हमारे साथ छल किया है। उन्होने मर्यादा का उल्लंघन किया है। अत: अब हमारा धैर्य भी जवाब दे रहा है।
संदेशा
प्रेम का प्रसार बस प्रेम के आदान-प्रदान से ही संभव है और यही इसकी मर्यादा भी है। प्रेम के बदले योग का संदेशा देकर श्री कृष्ण ने मर्यादा को तोड़ा,तो उन्हे भी जली-कटी सुननी पड़ी। और प्रेम के बदले योग का पाठ पढ़ानेवाले उद्धव को भी व्यंग्य और अपमान झेलना पड़ा। अत: किसी के प्रेम का अनादर करना अनुचित है।
Explanation:
HOPE IT HELPS.
Answer:
kripya like aur share kar dijiye Mere is answer ko dhanyvad