मन की मूर्खता क्या है ?
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इस मन की ऐसी मूर्खता है कि यह श्रीराम भक्ति रूपी गंगा जी को छोड़कर ओस की बूँदों से तृप्त होने की आशा करता है। जैसे प्यासा पपीहा धुएँ का गोट देखकर उसे मेघ समझ लेता है, परंतु वहाँ न तो उसे शीतलता मिलती है और न जल मिलता है, धुएँ से आँखें और फूट जाती हैं। यही दशा इस मन की है।
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