Hindi, asked by kumarsunil14645, 10 months ago

मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं
पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।​

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Answered by ajeet7890singh
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Answer:

उपरोक्त पद में महाकवि सूरदास गोपियों के मन व्यथा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि हमारे मन में विचारों की उथल पुथल मची हुई है ,वो एक ही बात को पुनः पुनः विचार करती है।हे उधव यह मन की बातें किससे कहूँ अपने मन की बात किसी से नहीं कही जाती ।कृष्ण के आने कीआशा में हमनें यह तन और मन की व्यथा सहन की थी।अब तुम्हारे मुख से यह योगसंदेश सुन सुन कर हमारी विरह व्यथा बढती जा रही है ।अब हम अपने आँसूओं के सैलाब को नहीं रोक पा रही हैं। गोपियाँ कहती है कि अब हम अधिक धैर्य धारण नहीं कर सकती हैं ।

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