Hindi, asked by rishabhpushkararjun3, 7 months ago


मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाई कौन पै, उधो, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की तन मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि, बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तै, उत तें धार बही।
'सूरदास अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लही।।
क. किसके मन की बात मन में रह गई और क्यों ?
ख. गोपियाँ क्या व्यथा सह रही थीं और किसके बल पर सह रही थीं ?
ग. गोपियों की विरहाग्नि और अधिक क्यों बढ़ गई ?​

Answers

Answered by samaskpallavi
2

Answer:

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Answered by radhikagoyal336
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Answer:

गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में वक्रोक्ति है। वे दीखने में प्रशंसा कर रही हैं किंतु वास्तव में कहना चाह रही हैं कि तुम बड़े अभागे हो कि प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न किसी के हो सके, न किसी को अपना बना सके। तुमने प्रेम का आनंद जाना ही नहीं। यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।

) गोपियों के मन की बात मन में ही रह गई क्योंकि गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, फिर भी ये अपने प्रेम को श्रीकृष्ण के सम्मुख प्रकट नहीं कर पाई। (ख) गोपियों श्रीकृष्ण के वियोग में विरह व्यथा को सह रही थीं। उन्हें यह विश्वास था कि श्रीकृष्ण एक-न-एक दिन ब्रज वापिस अवश्य आएँगे।

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