‘मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं उक्त पंक्ति के आधार पर विरही की पीड़ा स्पष्ट कीजिए।
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कवि घनानंद छंद के आरम्भ में ही स्पष्ट कहते हैं।’अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं’ प्रेम का यह मार्ग सच्चों के लिए ही बना है। सयानों और कपटियों के लिए नहीं । पर घनानंद की प्रेयसी तो प्रेम को भी स्वार्थ तराजू पर तोलती है। वह प्रेमी का तो पूरा मन और तन चाहती है किन्तु बदले में छटाँक भर भी प्रेम देना नहीं चाहती। ऐसे कपटी से प्रेम करके विरही को जीवन भर पीड़ा ही झेलनी पड़ती है। वह पीड़ा ही कवि के हिस्से में आई है।
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