मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही न हो, इसके लिए आप क्या करेंगे
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मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही न हो, इसके लिए आप क्या करेंगे
मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही न हो, इसके लिए मैं सबसे पहले अपने आप को दूसरों से अपनी तुलना करना बदं करूंगी | यह बात सच्च है जब हम अपने आप को किसी दूसरे से तुलना करते है और यह सोचते है कि वह मुझसे अच्छा है , और मुझसे आगे निकल जाएगा , उसके ज्यादा नंबर आ गए , उसे पास ज्यादा पैसे आदि यह सब बाते सोचना और तूलना नहीं करेंगे तब हमारे अंदर की ईर्ष्या और जलन अपने आप ही चली जाएगी|
हमें अपने आप को इतना काबिल और सफल बनाना होगा कि हम दूसरों को देख कर यह सोच न सके की हमारे पास वो नहीं है जो इसके पास है| हमें खुद पर विश्वास रख कर आगे बढ़ना होगा और जो हमरे पास है उस में खुश रहना होगा|
ईर्ष्या मनुष्य को बर्बाद कर देती है | ईर्ष्या का रास्ता बहुत हानीकारक होता है जो इसे नहीं छोड़ पाता उसका जीवन नर्क बन जाता है|
मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही ना हो, इसके लिए हमारा मन किसी विशेष लक्ष्य से पूर्ण होना चाहिए। जिसमें, किसी और क्षेत्र के बारे में सोचने या चर्चा करने के लिए फिज़ूल समय ना हो। ऐसी, स्थिति में हमारा मन केवल हमारे लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए।