मन में दसों दिशाओं में घूमने का क्या अभिप्राय है
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➲ मन में दसों दिशाओं में घूमने का अभिप्राय है कि मन भटक रहा है, स्थिर नही है, चंचल प्रवृत्ति का हो गया है।
व्याख्या...
➤ मन दसों दिशाओं में घूमने का अभिप्राय यह है कि मन भटक रहा है अर्थात मन की प्रवृत्ति चंचल हो गई है। कबीर दास अपने दोहे के माध्यम से कहते हैं कि...
माला तो कर में फिरैं, जीभ फिरै मुख माहीं।
मनवा तो दहू दिस फिरै, यह तो सुमिरन नाहीं।।
अर्थात कबीरदास ढोंग पर प्रहार करते हुए कहते हैं कि आदमी माला फेरते हुए मुँह में मंत्र पढ़ता है। ऐसा करके वह सच्ची पूजा नहीं करता क्योंकि वह कहने को तो मंत्र पढ़-पढ़ कर मारा फेरता रहता है, लेकिन उसका मन वास्तव में चारों दिशाओं में भटक रहा होता है।
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