‘मन मथुरा दिल द्वारिका, काया काशी जाणि।’ इस दोहे में कबीर ने किस भावना की अभिव्यक्ति की है?
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“मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जाणि”
इस दोहे में कवि ने कबीर ने मन की शुद्धता एवं पवित्रता का महत्व बताते हुए परमात्मा का वास अपने शरीर के अंदर ही बताया है और कबीर ने मन की शुद्धता और पवित्रता के महत्व की भावना व्यक्त की है।
Explanation:
कबीरदास जी कहते हैं कि अपना मन ही सबसे पवित्र है। जब मन पवित्र होता है तो उसी के अंदर मंदिर बन जाता है फिर हमें कहीं पत्थर के मंदिरों में जाने की और तीर्थ स्थानों में भटकने की जरूरत नहीं पड़ती। अर्थात कबीरदास जी कहते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर ही परमात्मा का वास है। ईश्वर का वास है, अपने अंदर के उस ईश्वर को पहचानो। उससे आत्मसाक्षात्कार करो फिर बाहर ईश्वर ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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