मनु ने मनुस्मृति में न्याय की व्यवस्था को किस प्रकार बताया है?
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man Smriti hindu dharm ka ek prachin Dharm Shastra
मनु स्मृति में न्याय की व्यवस्था...
मनु स्मृति में न्याय की स्थापना के लिए राज्य को सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य के रूप में मान्यता दी गई है और इसे राज्य के अस्तित्व का आधार भी माना गया है।
मनुस्मृति के अनुसार समाज में होने वाले अन्याय के निराकरण करने के लिए और न्याय की स्थापना करने के लिए ईश्वर ने राजा की रचना की।
मनुस्मृति के अनुसार संसार में निष्पाप लोगों की संख्या बहुत कम होती है। मानव काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि के वश में आकर अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का हनन करने लगता है और अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है।
मनुस्मृति के अनुसार राज्य में दंड शक्ति के कारण दुष्ट लोग भयभीत रहते हैं और अपनी मर्यादा में रहते हैं और यह दंड शक्ति ही राज्य के सभी व्यक्तियों को उनके कर्तव्य पालन के लिए बाध्य करती है और उन्हें अपने अधिकारों के प्रयोग के प्रति जागरूक करती है।
अपने इस कर्तव्य पालन के कारण ही राज्यों में सुरक्षा की भावना का संचार करता है। मनुस्मृति में अपराधों एवं दंड विधानों का विस्तृत रूप से वर्गीकरण करके उसकी विवेचना की गई है और राजा को यह निर्देश दिया गया है कि वह न्याय का कार्य करें।