Science, asked by Anonymous, 7 months ago

मन और बुद्धि के महत्व को सुनकर आप किसके बात मानेंगे सकरणन सोचिए





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Answered by Anonymous
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Answer:

भीष्‍म जी कहते है- निष्‍पाप पुत्र युधिष्ठिर! द्वैपायन व्‍यासजी के मुख से वर्णित जो पंचमहाभूतों का निरूपण है, वह मैं पुन: तुम्‍हें बता रहा हूँ; तुम बड़ी स्‍पृहा के साथ इस विषय को सुनो। वत्‍स! प्रज्‍वलित अग्नि के समान तेजस्‍वी भगवान् वेदव्‍यास ने धूमाच्‍छादित अग्नि के सदृश विराजमान अपने पुत्र शुकदेव के समक्ष पहले जिस प्रकार इस विषय का प्रतिपादन किया था, उसे मैं पुन: तुमसे कहूँगा। बेटा! तुम सुनिश्वित दर्शन शास्‍त्र को श्रवण करो। स्थिरता, भारीपन, कठिनता, (कड़ापन), बीज को अंकुरित करने की शक्ति, गन्‍ध, विशालता, शक्ति, संघात, स्‍थापना और धारण शक्ति ये दस पृथ्‍वी के गुण है।

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कृपया मुझे दिमागी रूप से चिह्नित करें ......

Answered by BetteRthenUhh
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मन, बुद्धि और विवेक

April 27, 2013, 10:34 AM IST ललित कुमार अग्रवाल in अंतरात्मा की आवाज | अन्य

भगवान धन्वंतरी ने कहा ज्यादा तीखा, मीठा, खारा और बासा भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ज्यादा तीखा या मीठा खाना रोगों को दावत देने जैसा है । वास्तव में आप की जीभ का स्वाद ही आपके दिमाग की इच्छा है । आपकी जीभ की नसें सीधे दिमाग तक जाती है, तत्पश्चात दिमाग बताता है कि ये तीखा मीठा क्या है और कितना चाहिए। ये धारणा हम दिमाग में बनाते है तब ही परिणाम आता है ।

ये सर्वविदित है पर इसमें देखने जैसी एक चीज है कि इस फैसले को लेने के लिए हमने जिस माध्यम का इस्तेमाल किया उसमें मन सबसे पहले है । बुद्धि अपनी राय देती है और विवेक उसे तोलकर सही गलत बताता है। परन्तु मन कैसे माने उसकी बात । अगर मन ही मान ले बात बुद्धि और विवेक की तो झगड़ा क्या, कुछ भी तो नहीं । इसमें एक बारीक़ बात छुपी है जिसे हम हमेशा नजरअंदाज करते है वह है करने और न करने का फैसला । जैसे हमारे सामने रसगुल्ला रखा गया, मन कहता है खा, बुद्धि ने समझाया मन को कि नहीं । पर मन बुद्धि पर भारी है । अब कहा बुद्धि ने चलो एक खा लो । मन फिर कहता है कि एक से क्या होगा, दो खा परन्तु इसी बीच हमारा विवेक कहता है नहीं ये ठीक नहीं, मत खा मधुमेह हो जायेगा ।

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