मन रे हरि भजि हरि भजि हरि भन भाई। जा दिन तेरा कोई नाही, ता दिन राम सहाई टेक तत न जानें मत न जानें, जानें जानूं सुंदर काया। मौर मलीक छत्रपति राजा, ते भी खाये माया। वेदन जानूँ भेद न जानें, जानें जानें एकहि राँमाँ पंडित दिसि पछिवारा कीन्हां, मुख कीन्हाँ जित्त नामा ॥ राजा अंबरीक कै कारणि, चक्र सुदरसन जार। दास कबीर की ठाकुर ऐसी, भगत की सरन उबारै। 123 (5)
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wow yr
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kaha se likhi itni beautiful lines
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