मनोरंजन के साधन पर अनुछेद in 150-200 words
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मनोरंजन के साधनों में टेलीविजन का भी प्रमुख स्थान है । यह एक नया आविष्कार है । रेडियो पर हम आवाज केवल सुन सकते हैं, मगर टेलीविजन पर हम आवाज सुनने के साथ-साथ उन्हें देख भी सकते हैं तथा खेलों, नाटकों आदि के आकर्षक चित्र देखकर पर्याप्त आनंद उठा सकते हैं ।
मनोरंजन की दृष्टि से रेडियो और टेलीविजन की अपेक्षा चित्रपट का विशेष महत्त्व है । रेडियो और टेलीविजन से एक ही परिवार के लोगों का मनोरंजन होता है, पर चित्रपट मनोरंजन का सार्वजनिक साधन है । इसके अतिरिक्त रेडियो से केवल कर्णेंद्रिय की ही तृप्ति होती है, नेत्र आनंद से वंचित रह जाते हैं । चित्रपट दोनों इंद्रियों को संतुष्ट करता है ।
सिनेमा में हम नृत्य, संगीत और अभिनय-कला का एक साथ आनंद उठा सकते हैं । सर्वसाधारण, जो अपने घरों में रेडियो अथवा टेलीविजन की व्यवस्था नहीं कर सकते, सिनेमा देखकर ही अपना मन बहला लेते हैं । नदी, पर्वत, लहराते सागर, युद्ध, पात्रों के कार्य-कलाप और उनकी वेशभूषा के मोहक दृश्य देखकर तथा उनके साथ मधुर व ओजस्वी संवाद सुनकर हम अपना मनोरंजन करने के साथ-साथ जीवनोपयोगी शिक्षा भी प्राप्त कर सकते हैं ।
मनोरंजन के अन्य सुलभ साधनों में नाटक, नौटंकी, सर्कस, प्रदर्शनी आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है । सर्कस में शेर, चीते, बंदर, हाथी, भालू आदि के आश्चर्यजनक करतब देखकर दाँतों तले उंगुली दबा लेनी पड़ती है । इनके अतिरिक्त क्रिकेट, फुटबॉल, हाँकी, टेनिस आदि खेलों के मैचों को देखने से भी हमारा पर्याप्त मनोरंजन होता है । मुंबई जैसे बड़े-बड़े नगरों में घुड़दौड़ का दृश्य देखने के लिए लाखों की भीड़ जमा हो जाती है ।