Hindi, asked by priyankoo7, 7 months ago



मन रे तन कागद का पुतला । लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करे क्या इतना । इन पंक्तियों में कौन-सा रस है ? *


Answers

Answered by bhatiamona
2

मन रे तन कागद का पुतला । लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करे क्या इतना ।

इन पंक्तियों में शांत रस है|

शांत रस : जब मनुष्य के मन में आनंद का अभाव हो उसे रस कहते हैं और जब मनुष्य का पूरा ध्यान अध्यात्मिक की और लग जाता है और दुनिया से मोह खत्म होने का भाव उत्पन्न हो जाता है उसके मन को शान्ति प्राप्त होती है उसे शांत रस कहते है |  

जहां पर संसार के प्रति उदासीनता के भाव का वर्णन किया गया हो वहां पर शांत रस होता है| जहाँ पर न दुःख होता है, न ही द्वेष होता है मनुष्य का मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है, और वो सब छोड़ के शान्ति की और भागता है|

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मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाइ छिन में, गरब कर क्या इतना। इसका अर्थ

Answered by shishir303
0

मन रे तन कागद का पुतला।

लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करे क्या इतना।

इन पंक्तियों में “शांत रस” है।

स्पष्टीकरण:

शांत रस की परिभाषा के अनुसार जब किसी काव्य में सांसारिक मोह माया के प्रति ग्लानि या वैराग्य का भाव प्रकट किया जाए तो वहां पर शांत रस होता है। शांत रस में जब सांसारिक मोह माया के प्रति वैराग्य का भाव पैदा होने पर और ईश्वर के प्रति श्रद्धा प्रकट होने पर मन को जो शांति प्राप्त होती हो, वहां शांति रस प्रकट होता है। इन पंक्तियों में कवि अपने मन की तुलना कागज से करके ईश्वर के प्रति भक्ति भाव प्रकट कर रहा है, और उस ये भाव प्रकट करके शांति मिल रही है, इसलिये यहाँ पर ‘शांत रस’ उत्पन्न हो रहा है।

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