मनुष्य अपनेसंकल्ोंका बना हुआ है। जैसा वह संकल् करता है, वैसा ह वह होता है। एक्लव्य नेसंकल्
भकया अभित य धनुधणर बननेका। उसनेकहा, "यद मेर भजज्ञासा सच्च होग तो मुझेकोई ि रोक नह ं
पाएगा। इतना ह नह ं, द्रोर्ाचायणह मेरेगुरु होंगे।और हुआ ि वह । स्वयंगुरु द्रोर्ाचायणको उसक "
कु भटया तक आना पडा, उसक धनुभवणद्या हेतुसवोत्कृ ष्टता का िमार्पत्र देनेकेभलए। दृढ संकल् वालेभकस -
िकार कायणकरतेहैंयह िह्लाद के ज वन सेजाना जा सकता है। ध्रुव बालक सह , पर वह आभदयुग क भनष्ठा
और भवश्वास का ित क था। उसनेअपनेसंक्ल्ल् के बल पर अभवचल पद िाप्त कर भलया। िखिमत शबर ि
संकल्भनष्ठा का अिभतम उदाहरर् है।
िश्न:
1. मनुष्य अपनेिाव ज वन मेंकै सा बन जाता है?
2. अपनेभकस गुर् के कारर् एकलव्य धनुधणर बन गया?
3. द्रोर्ाचायणनेएकलव्य क धनुभवणद्या को भकस कोभट का बताया?
4. उपयुणि गद्यांश का उभचत श र्णक हो सकता है-
5. "िखिमत शबर ि संकल्भनष्ठा का अिभतम उदाहरर् है।शब्द भकस िकार का "अिभतम" वाक्य में "
शब्द है?
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