"मनुष्य ही भावी मानव विनाश की आशंका से सिहल भी उठा है।"इसका तात्पर्य स्पष्ट कीजिए
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एक ओर जहाँ मनुष्य की बुद्धि ने धरती को मानव शून्य बनाने के भयंकर मारणास्त्र तैयार कर दिए हैं वहीं दूसरी ओर मनुष्य ही इस भावी मानव-विनाश की आशंका से सिहर भी उठा है। ... यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है कि सिर्फ़ मनुष्य ही है जो अपने भविष्य के बारे में चिंतित है।
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