मनुष्य हमेशा दूसरों की बुराई क्यों देखता है
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क्यों कि वह दूसरों की खुशियां देख कर जलता है।
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please agar sahi ho to brainliest bana dena
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"हमेशा बुराई या कमी ढूंढने वाला व्यक्ति उस मक्खी की तरह होता है, जो शुद्ध और स्वच्छ को छोड़कर गन्दगी में ही रमता है"
एक बार इंसान ने कोयल से कहा "तू काली ना होती तो कितनी अच्छी दिखती।", सागर से कहा "तेरा पानी खारा ना होता तो कितना अच्छा होता।",गुलाब से कहा "तुझमे कांटे ना होते तो कितना अच्छा होता।", तब तीनो एक साथ बोले कि "इंसान तुझ में दुसरो कि "कमिया" देखने की आदत ना होती तो तू कितना अच्छा होता।" कहने का मतलब है कि “दुनिया में कोई इंसान परिपूर्ण नहीं होता”, हर इंसान में कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां होती है, ये अलग बात है कि किसी में अच्छाइयां ज्यादा और बुराइयां कम तो किसी में बुराइयां ज्यादा और अच्छाइयां कम। लेकिन हमें हमेशा लोगो की बुराइयां या कमियों को नजरअंदाज़ करके उसकी अच्छाइयों को देखना चाहिए, क्योंकि उनकी अच्छाइयों को देखकर ही हम अपने आप को और अच्छा बना सकते है।
"बुरे लोगो को दुसरे की बुराई में ही मजा आता है"
बहुत समय पहले की बात है।एक बार एक गुरु जी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे।
तभी एक राहगीर आया और उनसे पूछा, “महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ?”
गुरु जी बोले, “जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?”
”मत पूछिए महाराज, वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं.”, राहगीर बोला।
गुरु जी बोले, “इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया।
कुछ समय बाद एक दूसरा राहगीर वहां से गुजरा।उसने भी गुरु जी से वही प्रश्न पूछा, “मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?”
”जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?”, गुरु जी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा।
“जी वहां तो बड़े सभ्य, सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं.”, राहगीर बोला।
”तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे…सभ्य, सुलझे और अच्छे ….”, गुरु जी ने अपनी बात पूर्ण की और दैनिक कार्यों में लग गए।पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे और राहगीर के जाते ही उन्होंने पूछा, “क्षमा कीजियेगा गुरु जी पर आपने दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें क्यों बतायी।”
गुरु जी गंभीरता से बोले, “शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते जैसी वे हैं, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं जैसे कि हम खुद हैं।हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं।”
शिष्य उनके बात समझ चुके थे और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया।
“हर एक चीज में एक खूबसूरती, एक अच्छाई होती है, लेकिन हर कोई उसे नहीं देख पाता”
पैर से अपाहिज एक भिखारी सदा प्रसन्न और खुश रहता था, किसी ने पूछा : अरे भाई, तुम भिखारी हो, लंगड़े भी हो, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी तुम इतने खुश रहते हो, क्या बात है ? वह बोला : बाबूजी भगवान् का शुक्र है कि में अँधा नहीं हूँ , भले ही मैं चल नहीं सकता; पर देख तो सकता हूँ, मुझे जो नहीं मिला मैं उसके लिए भगवान् से कभी शिकायत नहीं करता बल्कि जो मिला है उसके लिए धन्यवाद जरुर देता हूँ, यही हैं दुःख में से सुख खोजने कि कला…
"जिस प्रकार हवा के झोंके किसी चट्टान को नहीं उखाड़ सकते, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति पर उसकी बुराई या तारीफ करना कोई असर नहीं डाल सकता"
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था। चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को, जहाँ भी इसमें कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे। जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी। यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था। तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उसके दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई। उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे। उसने अगले दिन यही किया। शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया। वह संसार की रीति समझ गया। "कमी निकालना, निंदा करना, बुराई करना आसान, लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है"
कहते है “दूसरों की कमी निकालने के लिए जब उनकी तरफ आप एक उंगली उठाते हो