English, asked by sd3235515, 4 months ago

मनुष्य जीवन sukhm भवति​

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Answered by mohitjarngal2006
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हम मनुष्य है और अपनी बुद्धि व ज्ञान का उपयोग कर हम सत्य और असत्य का निर्णय करने में समर्थ हो सकते हैं। परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यह ज्ञान सभी मनुष्यों के लिए दिया गया था। यह ज्ञान ज्ञानी व अज्ञानी अर्थात् सभी श्रेणी के मनुष्यों ज्ञानी, अल्पज्ञानी तथा अज्ञानी सभी के लिये ग्राह्य तथा धारण करने योग्य है। वेदों के ज्ञान को आचरण में लाकर ही मनुष्य ज्ञानी, सदाचारी तथा धार्मिक बनता है। जो मनुष्य वेद ज्ञान के विरुद्ध आचरण करते हैं वह न तो ज्ञानी हो सकते हैं, न ही सदाचारी और न ही धार्मिक। इसका ज्ञान व अनुभव मनुष्य को वेदाध्ययन एवं ईश्वर की उपासना करने से होता है। ऋषि दयानन्द ने अपने वेदों के गहन ज्ञान के आधार पर वेदों को सब सत्य विद्याओं की पुस्तक बताया है और घोषणा की है कि वेदों पढ़ना व पढ़ाना तथा सुनना व सुनाना सभी सज्जन, श्रेष्ठ व आर्य पुरुषों का परम धर्म है। वेदों को परम धर्म इस लिये बताया है कि वेदों के अध्ययन व आचरण से ही मनुष्य की बुद्धि पूर्णरूप से विकसित होती है और मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्यों व लक्ष्यों का ज्ञान होता है। मनुष्य जीवन के उद्देश्य क्या हैं? वेदों के अनुसार मनुष्य जीवन के लक्ष्य हैं धर्म का पालन, सत्कर्मो से अर्थ की प्राप्ति, शास्त्र के अनुसार मर्यादित जीवन व्यतीत करना तथा ईश्वर का साक्षात्कार कर मोक्ष को प्राप्त करना। इसे धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष भी कहा जाता है। सृष्टि के आरम्भ से ही हमारे पूर्वज ऋषियों, ज्ञानियों व योगियों को इन सब बातों का ज्ञान था। सभी वैदिक जीवन पद्धति के अनुसार त्यागपूर्ण व परोपकार से युक्त जीवन व्यतीत करते थे। आज भी यही जीवन सार्थक एवं प्रासंगिक है। वेदों का उत्तराधिकारी वैदिक धर्मी व आर्यसमाज का अनुयायी स्वयं में इन शिक्षाओं को सार्थक करते हुए देश व समाज में वैदिक शिक्षाओं का प्रचार व प्रसार करता है। वेदों रुढ़िवाद के स्थान पर वेद व शास्त्रों की बुद्धि व ज्ञान युक्त बातों को ही स्वीकार करने की प्रेरणा व शिक्षा देते हैं। इन्हीं शिक्षाओं को धारण व पालन कर हमारे पूर्वज ऋषि, महर्षि, योगी, ध्यानी व महापुरुष बनते थे। राम व कृष्ण, आचार्य चाणक्य सहित ऋषि दयानन्द वेदों की शिक्षाओं को धारण कर ही विश्व के आदर्श महापुरुष बने थे। इनका यश आज भी है और सृष्टि की प्रलय पर्यन्त इसी प्रकार बना रहेगा। आज की परिस्थितियों को देखकर नहीं लगता कि वर्तमान व भविष्य में कोई मनुष्य इन महापुरुषों के यश व कार्यों के अनुरूप अपने जीवन को बना सकेगा यद्यपि लक्ष्य हमारा इन महापुरुषों के अनुरूप अपने जीवन को बनाना ही है व यही सबका लक्ष्य होना चाहिये।

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