मनुष्य जन्म से ही अहंकार का इतना विशाल बोझ लेकर आता है कि उसकी दृष्टि सदैव दूसरे के
दोषों पर ही टिकती है। आत्मनिरीक्षण को भुलाकर साधारण मानव केवल दूसरों पर-छिद्रान्वेषण में ही
अपना जीवन बिताना चाहता है। इसके मूल में उसकी ईर्ष्या की दाहक दुष्प्रवृति कार्यशील रहती है। दूसरे
की सहज उन्नति को मनुष्य अपनी ईर्ष्या के वशीभूत होकर पचा नहीं पाता और उनके गुणों को अनदेखा
करके केवल दोषों और दुर्गुणों को ही प्रचारित करने लगता है। इस प्रक्रिया में वह इस तथ्य को भी
आत्मविस्मृत कर बैठता है कि ईर्ष्या का दाहक स्वरूप स्वयं उसके समय, स्वास्थ्य और सद्वृत्तियों के लिए
कितना विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। परनिंदा को हमारे शास्त्रों में भी पाप बताया गया है। वास्तव में
मनुष्य अपनी न्यूनताओं, अपने दुर्गुणों की ओर दृष्टि उठाकर देखना भी नहीं चाहता क्योंकि स्वयं को
पहचानने की यह प्रक्रिया उसके लिए बहुत कष्टकारी है। अपनी वास्तविकता, अपनी क्षुद्रता उसे इतना क्षुब्ध
करती है कि वह उसे भूलाकर दूसरों के दोषों को ढूंढकर ही अपना दुख हल्का करना चाहता है। विवेकशील
ज्ञानी पुरुष अपने बारे में इस वास्तविकता से मुख मोड़ने के स्थान पर आत्मनिरीक्षण को ही श्रेयस्कर
समझते है। इस आत्मनिरीक्षण के कठिन रास्ते पर चलकर ही मनुष्य अपनी दुष्प्रवृत्तियों को पहचान कर
उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है। मनीषियों की गंभीर वाणी इसी कारण सदैव अपने दोषों को ढूंढने का ही
उपदेश देती है। किंतु इस व्यवहार में वे ज्ञानी व्यक्ति ही आते हैं, जो अपने विषय में कटु सत्यों का
सामना करने को तत्पर रहते हैं। संत कबीर के एक दोहे में इसी तथ्य का निरुपण बडे सरल शब्दों में
किया गया है-
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन दे आपणा, मुझ-सा बुरा न कोय"
(क) मनुष्य की दृष्टि दूसरों के दोषों पर क्यों टिकी रहती है और वह कैसा जीवन बिताना चाहता है?
(ख) कौन-सी प्रक्रिया मनुष्य के लिए कष्टकारी है? इसका कारण क्या है?
(ग) विवेकशील व्यक्ति क्या अच्छा मानते हैं और क्यों?
(घ) प्रस्तत गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
Answers
Answer:
(क) मनुष्य की दृष्टि दूसरों के दोषों पर क्यों टिकी रहती है और वह कैसा जीवन बिताना चाहता है?
उतर : 1मनुष्य पैदा होने के बाद से ही अपनी इच्छाओं को पूरा करने में लग जाता है | वह कभी भी संतुष्ट नहीं होता | वह ओरों पर दोष निकलता है , और अपनी कमियों और दोषों को नहीं देखता | अपने आप को सबसे सही सोचने वाला जीवन व्यतीत करना चाहता है |
(ख) कौन-सी प्रक्रिया मनुष्य के लिए कष्टकारी है? इसका कारण क्या है?
उतर : अपनी खुद की कमियों और दोषों को पहचानना की प्रक्रिया मनुष्य के लिए कष्टदारी होती है | अपनी कमियां अपने आप को दुखी करती है , इसलिए वह ओरों में कमियां निकाल कर खुद शान्ति से रहना चाहता है |
(ग) विवेकशील व्यक्ति क्या अच्छा मानते हैं और क्यों?
उतर : विवेकशील व्यक्ति हमेशा समझदारी से काम करता है | वह किसी से भी कोई इर्ष्या नहीं करता | वह अपनी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ता है | अपने अपने दोषों को देखकर अपन दुह कम कर्ण चाहता है |
(घ) प्रस्तत गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उतर : प्रस्तत गद्यांश के लिए उचित शीर्षक असंतुष्ट मनुष्य |
akankar ke Karan manusya pr kya prawhaw padta hai