मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता हे इस पर अनुछेद्
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मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। वह चाहे किसी भी कुल में जन्म ले, परन्तु वह महान कर्म करके ही बन सकता है। उक्त विचार हरिद्वार से पधारे स्वामी राजेंद्रानंद महाराज ने गांव सदलपुर स्थित श्रीकृष्ण गोशाला में चल रही धेनु मानस हरिकथा के अंतिम दिन रविवार को कथा समापन पर व्यक्त किए। इससे पहले समापन पर हुए हवन में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने आहुति दी। उन्होंने कहा कि निस्वार्थ भाव से जो कर्म करेगा उसकी महानता हर समय याद रखी जाएगी। जीवन में संयम व नैतिक मूल्य के साथ ईश्वर भक्ति से सफलता प्राप्त की जा सकती है। स्वामी ने मानव को संतों की तरह संयमित जीवन से अपने को ईश्वर भक्ति में लीन कर देने की बात कही, संगति के परिणाम स्वरूप रंग आता है और यह रंग दो प्रकार के वेदमय भगवान श्री जाम्भोजी की वाणी में कहें गए है एक है दुनिया और दूसरा है धर्म का रंग। दुनिया के रंग में चराचर जगत रंगा हुआ है। आदर्श के योग्य उन्हीं का जीवन है जिसका जीवन धर्म के रंग में रंग चुका है। यह एक ऐसा रंग है जो युक्ति के साथ मुक्ति को प्रधान करने वाला है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में स्पष्ट उद्घोष कर रहे है कि जहां धर्म है, वहां मैं हूं और जहां मैं हूं वहां विजय है। अब निर्णय आपको करना है हार के पक्ष में रहना अथवा विजय के पक्ष में। उन्होंने धर्म की परिभाषा करते हुए कहा कि धर्म अर्थात वो नियम जिनकी पालना करने से इस लोक व परलोक दोनों में जीवन का भला हो। नियमों की पालना का नाम ही धर्म की पालना हैं।