Hindi, asked by krishna2205, 1 year ago

मनुष्य की आवश्यकता केवल संपति से पिरि नही होती इस पर अपने विसहर लिखिए​

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Answered by smartyjay9
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यह बड़ी अजीब बात है कि लोगों के सोच और उनके कर्म में कितना अंतर होता है। वहीँ यह बात भी सर्वमान्य है की कर्म सोच का ही परिमार्जित रूप होता है। फिर इस दोहरे मानदंड का अर्थ क्या है? ऐसी कौन सी अवस्थाएं हैं जो लोगों को उनके उद्देश्य से भटका देतीं हैं, अंतरात्मा की आवाज़ को दबा देतीं हैं? इस बात को स्पष्ट करने के लिए मानव जीवन का एक सुक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है।


smartyjay9: hii
smartyjay9: follow me please
smartyjay9: ans me
smartyjay9: guduuu
Answered by bhatiamona
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मनुष्य की आवश्यकता केवल संपति से पूरी नहीं होती इस पर अपने विचार लिखिए :

इस पंक्ति में मेरे विचार इस प्रकार है , मनुष्य की आवश्यकता केवल संपति से पूरी नहीं होती है, संपति हमारी जरूरी आवश्यकताओं को पूरा करती है| संपति से हम अपनो का प्यार नहीं प्राप्त कर सकते है , हम खुशियाँ नहीं खरीद सकते है| संपति से हम किसी के दिल में जगह नहीं बना सकते है| संपति से हम किसी का विश्वास नहीं जीत सकते है|  

संपति एक दिखाने के लिए होती है , यह जीने का साधन है पर संपति के जरिए हम सब कुछ हासिल नहीं कर सकते है| संपति यह चीज़ें यही रह जाती है बस साथ जाता मनुष्य के कर्म | संपति से कुछ भी कमाया नहीं जा सकता है| मनुष्य की आवश्यकता केवल संपति से पूरी नहीं होती संपति के साथ जीवन में जीने के लिए बहुत सारी चीजों की आवश्यकता होती है|

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