मनुष्य का भाग्य उसके हाथ में है । (आशय स्पष्ट कीजिए ।)
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किसी की कोई मजाल नहीं है की वह अपने मार्ग पर बढ़ रहे राहगीर को रोक सके। भले या बुरे स्तर के कार्य करने वालों की कथा गाथा इसी तरह की होती है। मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है। जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा। इस तरह से यह कहा जा सकता है की मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है।दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है। आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं।
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