मनुष्य के भीतर स्थिर भाव से क्या बैठा है? *
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मनुष्य के भीतर स्थिर भाव से क्या बैठा है? *
मनुष्य के भीतर महान अंतिरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप में होते है| उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना , यह बहुत बुरा आचरण है। मनुष्य के भीतर स्थिर भाव के कारण वह उसी प्रकार से काम करता जो वह सोचता है| लोभ है जिसके प्रति उसकी मोह-माया है| काम के साथ क्रोध भी है| स्वार्थ भी है| स्वार्थ के कारण मनुष्य अपने बारे में सोचता है|
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