मनुष्य का भविष्य उसके हाथों में हैं
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किसी की कोई मजाल नहीं है की वह अपने मार्ग पर बढ़ रहे राहगीर को रोक सके। भले या बुरे स्तर के कार्य करने वालों की कथा गाथा इसी तरह की होती है। मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है। जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा। इस तरह से यह कहा जा सकता है की मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है।दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है। आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं।
एक बात कह देता हूँ, आप समझ जायेंगे। व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है। स्वतंत्र किसको कहते हैं, जो अपनी इच्छा से काम करे या दूसरे के दबाव से काम करे? जो अपनी इच्छा से काम करे, वह स्वतंत्र है। तो आपका भविष्य पहले से कोई कैसे लिख देगा? अगर पहले से लिखा है, और वही होना है, तो आप परतंत्र हो गए। सच तो यह है कि आप जब चाहे, अपनी योजना बदल सकते हैं, जब चाहे बना सकते हैं। हमारी मर्जी है। हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं। अपने भविष्य के निर्माता हम स्वयं हैं। एक-एक मिनट में हम अपना भविष्य बनाते हैं। आप भाषा में बिगाड़ कर दीजिए, देखिए आपका भविष्य तुरंत बिगड़ जाएगा। आपकी क्रिया ठीक-ठीक चल रही है, आपका भविष्य अच्छा है। आप गलत क्रिया शुरु करो, देखो आपका भविष्य तुरंत बिगड़ जाएगा। इस प्रकार अपना भविष्य बनाना-बिगाड़ना हमारे हाथ में है। एक-दो मिनट में हम अपना भविष्य बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं। इन कागज के पोथी-पत्रों में कुछ नहीं लिखा।आपको एक कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास करता हूँ -
यह एक ऐसा स्वाभाविक सवाल है जो किसी न किसी रूप में समाज में सभी लोगो के मन में पाया जाता है ।फिर चाहे वह कोई पढा लिखा प्रफेशनल व्यक्ति हो या फिर कोई दीन दुनिया से बेखबर कोई आम साधारण इन्सान ही क्यों न हो ।हम सभी को यह जानने की उत्सुकता बराबर रहती है कि आखिर मनुष्य के भाग्य का फैसला कौन करता है?
भाग्य का निर्माता बनाम ईश्वर
कुछ लोगों का विचार है कि ईश्वर हमारे भाग्य को पहले से ही लिख देता है अर्थात हमें क्या बनना है या क्या नहीं बनना है यह बहुत कुछ भाग्य के निर्माता उस ईश्वर के हांथ मे है जो हमारे साथ साथ पूरी दुनिया के भाग्य का लेखा-जोखा रखता है ।और हम सब के भाग्य के अनुसार ही हमें जीवन में सफलता और असफलता से रूबरू कराता है ।इस लिए हमें जो भी अच्छा बुरा जीवन प्राप्त हो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए ।ईश्वर या फिर अपने भाग्य से बिना किसी शिकायत या शर्त के ।यही हमारा परम कर्तव्य भी है ।
भाग्य का निर्माता बनाम हमारे कर्म
ईश्वर यद्यपि संसार का मालिक है लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों का मानना है कि यह सच नही है कि ईश्वर हमारे भाग्य का निर्माता है या फिर ईश्वर हमारे भाग्य को पहले से ही तय कर देता है ।इस लिए हमें उसकी इच्छा मानकर अपने भाग्य को स्वीकारते हुए ज्यादा उछल कूद करने की नही सोचना चाहिए ।जो लोग इस विचार धारा को मानते हैं उनका कहना है कि वास्तव में हमारे भाग्य का कोई भी अन्य निर्माता नही होता बल्कि हम स्वयं अपने-अपने भाग्य के मालिक होते हैं ।अर्थात ईश्वर द्वारा नही बल्कि हमारे आचरण और कर्मों के अनुसार हमारे भाग्य का निर्धारण हम स्वयं करते हैं न कि कोई दूसरी अलौकिक शक्ति ।
कर्म वीर और हमारे भाग्य का रहस्य
इस संसार मे जो भी व्यक्ति अपने कर्तव्य को महत्व देते हैं उनका कहना है कि जो कुछ भी हम मनुष्य का जीवन प्राप्त करने के बाद अच्छा बुरा पाप पुण्य हासिल करते हैं उस सब के लिए हमारा खुद का जीवन ही वास्तव में मालिक होता है न कि ईश्वर ।लेकिन जो लोग ईश्वर को बीच में शामिल करते हैं तो उनका उद्देश्य अपनी ड्यूटी या अपने कर्मों के फल से भागने का होता है ।
हमारे भाग्य का निर्माता और पैंतरेबाजी
चूंकि हर मनुष्य को अपने कर्मों पर नही बल्कि अपने भविष्य के सुखद और अच्छे होने पर ज्यादा ध्यान रहता है इसलिए दुनिया में भाग्य की पैंतरेबाजी का विकास हुआ और यह क्रम सैकड़ों सालों से अबाध चल रहा है ।किसी जमाने में तो राजा-महाराजा बाकायदा राज ज्योतिष रखने के प्रति बेहद संवेदनशील थे और मजेदार बात यह है कि आज भले इसका रूप बदल गया हो लेकिन असलियत जरा भी नही बदली ।आज भी बड़े बड़े राजनेता अभिनेता इसी लकीर के फकीर बनकर भाग्य को जानने के लिए हर क्षण लालायित दिखाई देते हैं ।
भाग्य का फैसला बनाम हमारा भविष्य
यह सच है कि भाग्य हर व्यक्ति के हांथ मे होता है लेकिन हम चूंकि अपनी जिम्मेदारी के एहसास से दूर होते हैं इसलिए भाग्य की कहानी हमें ज्यादा आकर्षित करती है ।सच कहें तो हम इसी लिए भाग्य जानने के प्रति हर वक्त संजीदा रहते हैं ।लेकिन जिन्हे अपने कर्म और अपने पुरुषार्थ पर भरोसा होता है तो वह भाग्य पर नही अपने खुद के भरोसे पर ज्यादा ध्यान देते हैं
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Answer:
आदमी खुद के लिए अपने स्तर की दुनिया अपने हाथों खुद रचता बुनता है . जिस घोसलें में वह रहता है अपनी जिंदगी बिताता है उसकी निजी जिंदगी में किसी अन्य दूसरे का हस्तक्षेप नहीं रहता है . मनुष्य के जीवन में दुनिया की अड़चनें और सुविधाएं तो धूप छाँव की तरह आती और जाती हैं और उनकी परवाह किये वगैर कोई भी राहगीर लगातार अपने मार्ग पर चल सकता है .
किसी की कोई मजाल नहीं है की वह अपने मार्ग पर बढ़ रहे राहगीर को रोक सके . भले या बुरे स्तर के कार्य करने वालों की कथा गाथा इसी तरह की होती है जिसमें प्रतिकूल परिस्थितियों का झीना परदा उन्होंने उठाया और वही कर गुजरते हैं जो अभीष्ट होता है .