मनुष्य को चाहहए कक संतुललत रहकर अतत के मागों का त्यागकर मध्यम मागग को
अपनाए। अपने सामर्थयग की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीिन बबताना एक
कहिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के िशीभूत होकर अपना मूकयांकन अर्िक
कर बैिता है और इसी के फलस्िरूप िह उन कायों में हाथ लगा देता है जो उसकी
शक्क्त में नहीं हैं। इसललए सामर्थयग से अर्िक व्यय करने िालों के ललए कहा जाता
है कक ‘तेते पााँि पसाररए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के ललए कहा गया है कक अपने
सामर्थयग, को विचार कर उसके अनुरूप कायग करना और व्यथग के हदखािे में स्ियं को
न भुला देना एक कहिन सािना तो अिश्य है, पर सबके ललए यही मागग अनुकरणीय
है।
(क) मनुष्य को कौन-सा मागव अपनाना िाद ए ?
(i) असंतुललत मागग
(ii) संतुललत मागग
(iii) अमयागहदत मागग
(iv) मध्यम मागग
(ख) मनुष्य के मलए कदिन कला क्या ै?
(i) सामर्थयग के बबना सीमारहहत जीिन बबताना
(ii) सामर्थयग को बबना पहचाने जीिन बबताना
(iii) सामर्थयग की सीमा में जीिन बबताना
(iv) सामर्थयग न होने पर भी जीिन बबताना
(ग) सामान्य पुरुष अ ां के वशीभूत ोकर क्या कर बैिता ै ?
(i) अपने को महत्त्िहीन समझ लेता है।
(ii) ककसी को महत्त्ि देना छोड़ देता है।
(iii) अपना सिगस्ि खो बैिता है।
(iv) अपना अर्िक मूकयांकन कर बैिता है।
(घ) “तेते पााँव पसाररए, िेती लाांबी सौर’ का क्या अथव ै?
(i) सामर्थयग के अनुसार कायग न करना
(ii) सामर्थयग के अनुसार कायग करना
(iii) व्यथग का हदखािा करना
(iv) आय से अर्िक व्यय करना
(ङ) प्रस्तुत गदयाांश का उचित शीषवक ै -
(i) आय के अनुसार व्यय
(ii) हदखािे में जीिन बबताना
(iii) सामर्थयग से अर्िक व्यय करना
(iv) सामर्थयग के अनुसार कायग करना
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क) 4
ख) 3
ग) 2
घ) 2
ड) 1.
ये उत्तर आपकी मदद करें मेरी यही आशा है।
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क) 4
ख) 3
ग) 2
घ) 2
ड) 1.
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