मनुष्य का चितं भय विहीन कहाँ रहता है
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➲ मनुष्य का चित्त वहाँ भय विहीन रहता है, जहां ज्ञान के लिए मुक्त वातावरण हो। जहाँ गर्व से माथा ऊंचा कर कर चला जा सके। जहां देश को खंड-खंड करने वाले विचार ना पैदा हों। जहां स्वतंत्र रूप से सब साथ रह सकें। जहां धर्म जाति के आधार पर भेदभाव ना हो। जहां अपने इच्छा अनुसार जीने की आजादी हो। जहां बोलने की स्वतंत्रता हो। मनुष्य का चित्त ऐसी जगह भय विहीन रहता है।
‘चित्त जहां भय विहीन’ कविता में कवि रविंद्र नाथ टैगोर ने एक ऐसे भारत की कल्पना की है, जो भेदभाव रहित हो, जहां सर्व धर्म समभाव की भावना हो। जहां सब स्वतंत्रता से जी सकें, जहां समानता हो, समरसता हो और भाईचारा हो।
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