मनुष्य का हृदय बड़ा ममत्व प्रेमी है। कैसी ही उपयोगी और कितनी ही सुंदर वस्तु क्यों न हो, जब तक मनुष्य उसको पराई समझता है तब तक उससे प्रेम नहीं करता। किंतु भद्दी-से-भद्दी और काम में न आने वाली वस्तु को भी यदि मनुष्य अपनी समझता है तो उससे प्रेम करता है। पराई वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, कितनी ही उपयोगी क्यों न हो, कितनी ही सुंदर क्यों न हो, उसके नष्ट होने पर दूसरे मनुष्यों को दुख नहीं होता क्योंकि वह अपनी नहीं है। परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्य पराई चीज़ से प्रेम करने लगता है। ऐसी दशा में भी जब तक मनुष्य उस वस्तु को अपनी बनाकर नहीं छोड़ता अथवा अपने हृदय में यह विचार दृढ़ नहीं कर लेता कि यह वस्तु मेरी है, तब तक उसे संतोष नहीं होता। ममत्व से प्रेम उत्पन्न होता है, प्रेम से ममत्व। ये कभी अलग नहीं किए जा सकते।
(क) मनुष्य किसी वस्तु से भी प्रेम किस स्थिति में नहीं करता?
(ख) प्रेम और उपयोग, ममत्व और प्रेम में एक-दूसरे के साथी कौन हैं?
(ग) भद्दी-से-भद्दी वस्तु से भी मनुष्य कय प्रेम करने लगता है?
(घ) पराई वस्तु के नष्ट होने पर मनुष्य को दुख क्यों नहीं होता?
(ङ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
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the answer of this puestion is yes
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