'मनुष्य का जीवन भी एक कठपुतली के समान है ।' क्या इस कथन से आप सहमत
हैं ? क्यों?
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करते हुए कवि कहता हैं कि कठपुतली बन चुके मनुष्य इस तरह से आज़ाद हैं कि वे अपने विवेक के अनुसार कार्य नहीं करते, बल्कि कोई और ही व्यक्ति उन्हें वश में किए हुए है। ये मनुष्य कठपुतली के समान सदैव दूसरों के अनुसार कार्य करते हैं। आप समझ ही गए होंगे कि इसे आजादी नहीं, पराधीनता कहते हैं ।
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