मनुष्य के जीवन को पानी के बुलबुले की 5तरह क्यो माना गया है
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मनुष्य का जीवन बुलबुले की तरह : साध्वी
3 वर्ष पहले
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पानी के अनेक बुलबुले बनते हैं, लेकिन देखते ही देखते समाप्त हो जाते हैं। वैसे ही मनुष्य का जीवन है। जिस प्रकार रात में टिमटिमाते तारे सुबह छिप जाते हैं, दिखाई नहीं देते। उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी समाप्त हो जाता है। यह कहना है साध्वी पंकजा भारती का।
वह दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से आयोजित साप्ताहिक सत्संग में प्रवचन कर रही थी। हनुमान गेट आश्रम में चल रहे सत्संग में साध्वी पंकजा भारती ने कहा कि मानव का तन, जिसे हम इतना सजाते हैं, संवारते हैं। लेकिन यही शरीर एक दिन धोखा दे जाता है। आंख होते हुए भी नहीं देख पाएंगे, कान होते हुए भी सुन नहीं पाएंगे। उन्होंने कहा कि मानव तन पाने के लिए देवता प्रभु से प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना इसलिए करते हैं कि ताकि मनुष्य शरीर को ही सुख का साधन न समझे। बल्कि एक लक्ष्य के लिए जो भगवान और भक्त के बीच की दूरी खत्म हो जाए। साध्वी ने कहा कि जिस शरीर को हम सबकुछ मान बैठते हैं, लेकिन जब शरीर में रोग हो जाता है। भयंकर रोग जिससे अपने भी दूर होने लगते हैं, तब इसी शरीर से नफरत होने लगती है। इसके लिए अपने मानव जीवन के लक्ष्य को जानिए। इस शरीर के महत्व को जानिए, क्योंकि अगर हम उस लक्ष्य को नहीं जाने, तो मानव जीवन जीना व्यर्थ है।
यमुनानगर | साप्तहिक सत्संग में प्रवचन करती साध्वियां।
यमुनानगर | दिव्या ज्योति जाग्रति संस्थान की साप्तहिक सत्संग में उपस्थित श्रद्धालु।