Hindi, asked by njk567, 10 months ago

मनुष्य के जीवन मे आने वाली सम तथा विषम परिस्थियो का उल्लेख कीजिए
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Answers

Answered by tanya0432
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Explanation:

विवरण मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है

विषम परिस्थिति में सम रहें

मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है. हम बचपन से ही यह सुनते आये हैं. सही बात है, समय से अधिक बलवान कुछ नहीं. वही हमें आज राजा बनाता है वही कल रंक बना देगा. इन आज-कल की पहियों पर चलता हुआ समय कभी-कभी हमें अप्रत्याशित रुप से परेशानी में डाल देता है और हम सभी प्रयासों के बावजूद भी अभिलषित लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाते है. और, कभी-कभी तो बिल्ली की भाग से छींका टूट ही जाता है और तब हमारे दुश्मनों को भी छींक आने लगती है.

जो बलवान होता है, जिसके आगे अपनी नहीं चलेगी हम यह जानते हैं तो उससे संघर्ष करने में कोई लाभ नहीं है. वह जैसा कहता है, हमें उसकी अधीनता मानकर वैसा ही करना चाहिए. आखिर, उसने राम जैसे मर्यादापुरुषोत्तम को बन-बन भटकाया, जमीन पर सुलाया, यही नहीं, पत्नी को राक्षस के हाथ अपहरण करवा के, उन्हें रुलाया. राम और सीता हमारे जैसे कोई साधारण मनुष्य नहीं थे. वे वनवास के दौरान जमीन पर सोये हैं, वहीं, लक्ष्मण धनुष पर वाण चढ़ाए उनकी रक्षा में सावधान बैठे हुए हैं. पास में गुह श्री राम-सीता को देख कर कहते हैं,

“ससुर सुरेश सखा रघुराऊ, पीता जनक जग विदित प्रभाऊ,

रामचन्द्र पति सो वैदेही, सोअति महि विधि वाम न कही”

यह सब समय कराता है. लेकिन प्रश्न यह उठता है क्या हमें यही मानकर जीवन की आपदाओं-विपदाओं के आगे समर्पण कर देना चाहिए. यदि हाँ, तो फिर पुरुषार्थ की जगह कहाँ है ? मेरे विचार से ऐसा मनुष्य तो नीयति के हाथ की कठपुतली है जो जीवन के संघर्ष से विरत होकर जीवन यापन करे. इस प्रकार के लोग भाग्यवादी होते हैं, आलसी होते हैं, जिनकी कोई महत्वकांछा नहीं होती. “ दैव दैव आलसी पुकारा”. श्री रामचरित मानस में श्री रामचन्द्र समुद्र से विनय करते हैं लेकिन तीन दिन तक विनती नहीं मानने पर वे क्रुद्ध हो जाते हैं. इसका आशय यह भी है कि हमें अधिक देर तक चुप नहीं बैठना चाहिए.

समय अपनी भूमिका अदा कर रहा है. हमें भी अपनी भूमिका एक पुरुष के रूप में पूरी शिद्दत से करनी चाहिए. अब जमाना बदल गया है. आत्म-निर्भरता आवश्यक हो गयी है. रिश्ते-नाते पहले जैसे नहीं हैं. कोरी भौतिकता ने उनके रस को सोख लिया है. इसीलिये वे केवल नाम के रह गए हैं. न तो हमारे पास समय है और न हमारे सम्बन्धियों के पास की हम एक दुसरे से मिलें. ऐसे में, आत्म बल पूरी तरह अनिवार्य है. आज हमें समय के साथ अपनी लड़ाई अकेले ही लडनी है. इसीलिये समय के अनुसार ही चलना श्रेयस्कर है.

कहते हैं जब आपके साथ कोई नहीं है तो आप को सावधानी पूर्वक चलना चाहिए. वैसे एक दृष्टि से अधिक बल का न होना बहुत अच्छा होता है. कबीर दास जी इसीलिये भगवान् से उतना ही मंगाते हैं जितनी आवश्यकता है. ऐसे में हम यथेष्ट सावधान तो रहते ही हैं और हमें अनावश्यक अभिमान भी नहीं होता. कारण, हममें से अधिकतर लोग तो अपने बल पर कम और दूसरों के बल पर अधिक बोलते हैं. जिनके पीछे कोई नहीं होता वे विनम्र होते हैं. उन्हें यह ज्ञान रहता है कि हमें बचने वाला कोई नहीं है.

कहते हैं अभिमानी का समय ख़राब होता है, लेकिन उसे यह ज्ञान नहीं होता. अभिमान तो उसी को होता है जिसे इस बात का झूठा विश्वास होता है कि उसके पास अपरिमेय क्षमता है, अपार जन और धन बल है. बहुत से मंत्री-विधायक अपने शक्ति और सत्ता की मदान्धता में एक से एक अनैतिक कार्य कर देते हैं. वे यह भूल जाते हैं की ऐसा करना समय की मरजी के विरुद्ध है. इसीलिये, समय उनका साथ बहुत दिन तक नहीं देता. और जब समय साथ नहीं दे तो क्या होता है, यह तो सभी जानते हैं.

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