मनुष्य के जीवन में लक्ष्य का होना बहुत आवश्यक है । लक्ष्य के बिना जीवन दिशाहीन तथा व्यर्थ ही है। एक बार एक
दिशाहीन युवा आगे बढ़े जा रहा था, राह में महात्मा जी की कुटिया देख रूककर महात्मा जी से पूछने लगा कि यह रास्ता
कहाँ जाता है? महात्मा जी ने पूछा, “ तुम कहाँ जाना चाहते हो?” युवक ने कहा “मैं नहीं जानता मुझे कहाँ जाना है।
महात्मा जी ने कहा, “जब तुम्हें पता ही नहीं है कि तुम्हें कहाँ जाना है, तो यह रास्ता कहीं भी जाए, इससे तुम्हें क्या फर्क
पड़ेगा।" कहने का मतलब है कि बिना लक्ष्य के जीवन में इधर-उधर भटकते रहने पर कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाओगे।
यदि कुछ करना चाहते हो तो पहले अपना एक लक्ष्य बनाओ और उस पर कार्य करो। अपनी राह स्वयं बनाओ। वास्तव में
जीवन उसी का सार्थक है जिसमें परिस्थितियों को बदलने का साहस है।
गांधीजी कहते थे कुछ न करने से अच्छा है, कुछ करना । जो कुछ करता है वही सफल-असफल होता है। हमारा लक्ष्य
कुछ भी हो सकता है, क्योंकि हर इनसान की अपनी-अपनी क्षमता होती है और उसी के अनुसार वह अपना लक्ष्य
निर्धारित करता है। जैसे विद्यार्थी का लक्ष्य है सर्वाधिक अंक प्राप्त करना तो नौकरी करने वालों का लक्ष्य होगा पदोन्नति
प्राप्त करना । इसी तरह किसी महिला का लक्ष्य आत्मनिर्भर होना हो सकता है। ऐसा मानना है कि हर मनुष्य को बड़ा
लक्ष्य बनाना चाहिए किंतु बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाने चाहिए। जब हम छोटे लक्ष्य प्राप्त कर
लेते हैं तो बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने का हममें आत्मविश्वास आ जाता है । स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जीवन में एक ही
लक्ष्य बनाओ और दिन-रात उसी के बारे में सोचो । स्वप्न में भी तुम्हें वही लक्ष्य दिखाई देना चाहिए, उसे पूरा करने की एक
धुन सवार हो जानी चाहिए । बस सफलता आपको मिली ही समझो। सच तो यह है कि जब आप कोई काम करते हैं तो
यह जरुरी नहीं कि सफलता मिले ही लेकिन असफलता से भी घबराना नहीं चाहिए। इस बारे में स्वामी विवेकानंद जी
कहते हैं कि हजार बार प्रयास करने के बाद भी यदि आप हार कर गिर पड़ें तो एक बार पुनः उठे और प्रयास करें। हमें
लक्ष्य प्राप्ति तक स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।
दिशाहीन युवा को रास्ते में क्या दिखा?
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achi kahani hai i like it
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