मनुष्य को किस प्रकार की स्वतत्रता मिलनी चाहिएं?
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जब कभी मनुष्य ने इस धरती पर अपना अस्तित्त्व पाया होगा, तब से लेकर वर्तमान तक की जीवन-यात्रा में उसने अपनी अभिव्यक्ति के लिए आदिकाल से नए-नए साधनों, माध्यमों की खोज की, जिनमें सबसे उपयोगी और कारगर माध्यम ध्वन्यात्मक (वाक्) माध्यम ही नज़र आता है। इसका कारण यह है कि इसकी अभिव्यक्ति का सीधा संप्रेषण, ग्रहण और प्रभाव अन्य माधायमों से कहीं सहज, बेहतर और शीघ्रता से युक्त है। मनुष्य के जीवन-संघर्ष के अनंतर उसके अवकाश के कालों में फिर चित्र, लिपि और अन्य अभिव्यक्ति के साधनों ने अपना स्थान पाते हुए अभिव्यक्ति के नए द्वार खोले। अभिव्यक्ति मनुष्य के हर समय में जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता रही है,लेकिन वही आवश्यकताआज चुनौती बनकर उसी मनुष्य के समक्ष खड़ी है। अभिव्यक्ति ने जहां संसार के आपसी व्यवहार को सरलता, सुगमता, वैचारिक-भावनिक आधार प्रदान किए, वहीं आज उन आधारों पर दरारें दिखाई दे रही हैं।
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