Math, asked by bhoopbhoomi3088, 6 months ago

मनुष्य को किस प्रकार की स्वतत्रता मिलनी चाहिएं?​

Answers

Answered by tamimghazali78694
0

Step-by-step explanation:

स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियाँ चलती है और हर प्रांत अलग अलग ढंग से स्वतंत्रता का उत्सव मनाता है वहीं मुझमें भी यह प्रश्न उठता है कि स्वतंत्रता यानि क्या? सरहद के इस पार हम जन्में हैं तो हम 15 August को स्वतंत्रता दिवस मानते हैं और यदि हम उस पार जन्मे होते तो 14 August को यह उत्सव मनाते। यदि हम अमेरिका में जन्मे होते तो 4 July को आज़ादी का उत्सव मनाते और यदि हम कनाडा में जन्मे होते तो 1 July को स्वतंत्रता दिवस मानते।

अध्यात्म की मेरी इस यात्रा में यह सुनिश्चित हुआ है कि जो कुछ भी बदलता है वह मैं नहीं हूँ। मैं वही हूँ जो सदा से था, सदा है और सदा के लिए रहेगा। तो वास्तविक स्वतंत्रता भी वही है जो सदा से थी, सदा है और सदा रहेगी। किसी देश में जन्म ले कर वहाँ के स्वतंत्रता उत्सव को मानना और मनाना यह हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है पर स्वतंत्रता के सम्पूर्ण पहलू को समझ का स्वतंत्रता की ओर चार कदम उठाने का प्रयास मात्र मनुष्य जीवन में ही हो सकता है।

स्वतंत्रता उत्सव का स्वरूप

जो भी तंत्र स्वयं की ओर ले जाए उसका उत्सव मनाना स्वतंत्रता उत्सव है। अध्यात्म पथ पर आगे बढ़ते हमारे जीवन उत्सव-विरोधी कदापि नहीं है परंतु हम ऐसे उत्सव मनाने में उत्सुक होते हैं जो हमारे जीवन में कुछ मूल्य-वृद्धि (value addition) करें। एक दिन का उत्सव और फिर वही अनुत्साह और निराशा यह अध्यात्म पथ के साधक की जीवन शैली नहीं होती। हम तो उस तंत्र का उत्सव मनाते हैं जो हमें ‘स्व’ की अनंत, शाश्वत सत्ता से जोड़े और ऐसे जोड़े कि हमारा अस्तित्व ही उसी रूप हो जाए।

स्वतंत्रता — वैकल्पिक या अनिवार्य ? (optional or mandatory?)

प्रत्येक मनुष्य की खोज एकांत स्वतंत्रता ही है। स्वतंत्रता यानि किसी की ग़ुलामी में नहीं रहने की इच्छा। चाहे वह शारीरिक ग़ुलामी हो या मानसिक या सामाजिक परंतु यह निश्चित है कि मनुष्य को ग़ुलामी से घृणा है क्योंकि ग़ुलामी में शोषण की अनुभूति होती है। मनुष्य के भीतर कुछ ऐसा तत्त्व है जो जानता है कि मैं स्वयं में परिपूर्ण हूँ तो दूसरों की ग़ुलामी में क्यों रहूँ? विवशता बस यही है कि वह परिपूर्ण तत्त्व क्या है और कैसा है — इस समझ से मनुष्य अनजान है। इसी अज्ञान के कारण वह वस्तु, व्यक्ति, स्थिति का संग्रह तो करता है परंतु ग़ुलामी की अनुभूति होने के कारण स्वयं उन्हीं से थक जाता है, ऊब जाता है। समग्र अध्यात्म की यही खोज है कि किसी प्रकार से मनुष्य को उसकी ऐसी अनंत संपदा से परिचित कराया जाए कि वस्तु, व्यक्ति, स्थिति की मौजूदगी होते हुए भी उसकी ग़ुलामी का अनुभव न हो।

Answered by sahilgenius777
0

give you WhatsApp number to chat

Similar questions