Hindi, asked by anillohar467, 5 months ago

मनुष्य के कर्त्तव्य मार्ग में एक ओर तो आत्मा के भले, और
बुरे कर्मो का ज्ञान और दुसरी और आलस्य और स्वार्थपरता रहती है।
बस मनुष्य इन्ही दोनो के बीच में पड़ा रहता है और अन्त में यदि
उसका मन पक्का हुआ तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपने कर्म
का पालन करता है और यदि उसका मन कुछ काल तक दुविधा में
पड़ा रहा तो स्वार्थता निश्चित उसे आ घेरेगी और उसका चरित्र घृणा
योग हो जायेगा।
प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
2. उपर्युक्त गद्यांश का सार 30 शब्दों में लिखिए।​

Answers

Answered by gk2313401
0

Answer:

1 shirshak hai manushya ka Charitra. 2

Similar questions
Math, 5 months ago