मनुष्य के प्रत्यक्ष ज्ञान में देश और काल की परिमिति अत्यन्त संकुचित होती है । मनुष्य जिस वस्तु को जिस समय और जिस स्थान पर देखताज है उसकी उसी समय और उसी स्थान की अवस्था का अनुभव उसे होता है । पर स्मृति , अनुमान या दूसरों से प्राप्त ज्ञान के सहारे मनुष्य का ज्ञान इस परिमिति को लाँघता हुआ अपना देशकाल - संबंधी विस्तार बढ़ाता है ।
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sorry bro i cant
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i will try my best
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