Hindi, asked by deepamanral93, 5 months ago

मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा? बड़े-बड़े नेता कहते हैं-वस्तुओं की कमी है और मशीन
बढ़ाओ, और उत्पादन बढ़ाओ, और धन की वृद्धि करो, और बाह्य उपकरणों की ताकत
बढ़ाओ। एक बूढ़ा था, उसने कहा था-बाहर नहीं भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से
दूर करो, मिथ्या को हटाओ। क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोगों के लिए कष्ट सहो,
आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-तोषण की बात सोचो, काम करने की
बात सोचो। उसने कहा-प्रेम ही बड़ी चीज है, क्योंकि वह हमारे भीतर है उच्छृखलता पशु
की प्रवृत्ति है, स्व का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं पता
नहीं। उसे गोली मार दी गई, आदमी के नाखून के बढ़ने की प्रवृत्ति ही हावी हुई। मैं हैरान
होकर सोचता हूँ, बूढ़े ने कितनी गहराई में बैठकर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता
लगाया था। ऐसा कोई दिन जब मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणी
शास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का वह अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा,
जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी।
शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग बंद कर देगा। तब तक इस बात से छोटे बच्चों
को परिचित करा देना वांछनीय जान पड़ता है कि नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की
पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आदर्श है।
अस्त्र-शस्त्रों को बढ़ने न देना बृहत्तर जीवन एवं मनुष्यत्व का तकाजा है। मनुष्य में जो
घृणा है, उसे अनायास बिना सिखाए आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक है और अपने को
संयत रखना, दूसरों के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है। बच्चे यह जाने तो
अच्छा हो कि अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती हैं। ​

Answers

Answered by kirtikaranjan2
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Explanation:

मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा ? *

Answered by shishir303
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यह गद्यांश 'आचार्य हजारी प्रसाद' द्वारा लिखित 'नाखून क्यों बढ़ते हैं?' निबंध का एक भाग है पूरे निबंध का साथ इस प्रकार है...

‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी’ जी द्वारा लिखा गया एक विचारोत्तेजक निबंध है। इस निबंध में द्विवेदी जी हमें यह बताते हैं कि आज से दो हजार साल पहले भारत में नाखूनों को सजाने-संवारने की कला अपने शिखर पर थी। यानि नाखून सजाना-सवांरना उस समय श्रंगार का प्रतीक होता था। वह नाखून के सकारात्मक पक्ष को बताते हैं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि मनुष्य ने अपनी पाशविकता से नाखून का दुरुपयोग किया है।

द्विवेदी जी के कहने का तात्पर्य यह है कि जो वस्तुएं मनुष्य को पतन की ओर से खेलती हैं, उनको भी भारतीय परंपरा में कला का रूप देकर मनुष्य के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया गया है। लेखक ने इस निबंध में सबसे ज्वलंत प्रश्न उठाया है कि मनुष्य अपनी पाशविकता के बंधन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहा, वह नाखून बढ़ने को पाशविकता का प्रतीक मानते हैं, वह नाखूनों को हथियार का भी प्रतीक मानते हैं।

अपनी इस बात को आगे बढ़ाते हुए वह प्राणी विज्ञान के सिद्धांत का सहारा लेते हैं। प्राणी विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसी प्रवृत्तियां होती हैं, जिसे ना तो उसे सीखना होता है ना उसे उन बच्चों के लिए कोई अभ्यास करना होता है। जैसे बालों का बढ़ना, नाखूनों का बढ़ना, आँखों की पलकों का झपकना आदि यह वृत्तियां सहज रूप से उत्पन्न होती हैं। नाखूनों का बढ़ना भी एक ऐसी ही सहज वृत्ति है, यह मनुष्य की उस अवस्था का प्रतीक है, जब मनुष्य आदिम था और बर्बर अवस्था में रहता था, लेकिन आज के इस सभ्य समाज में मनुष्य उस बात को भूल गया है कि नाखूनों का बढ़ना उसके उसी आदिम स्वरूप का प्रतीक है। बाहरी तौर पर तो वह अपनी पाशविकता छूट चुका है, लेकिन उसके अंदर अभी भी पशुत्व है।

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