Hindi, asked by Tentacool, 6 months ago

मनुष्य किस प्रकार प्रकृति के विनाश का कारण बनता जा रहा है ? class 10 hindi chapter 6​

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Answered by Arpita1678
11

Answer:

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Explanation:

प्रकृति ने मानव को सभी वस्तुएं ऐसी प्रदान की हैं जिनसे वह किसी न किसी रूप में लाभांवित होता रहा है। परंतु आधुनिकता की दौड़ में इंसान इन प्राकृतिक स्त्रोतों को अनजाने में स्वयं ही खत्म कर रहा है। जीव, जंतु व वनस्तपति तेजी के साथ खत्म हो रही हैं तथा उसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ रहा है। नतीजा सामने है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है तथा ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। यदि समय रहते इसे संजीदगी से नहीं लिया गया तो मानव जीवन ज्यादा प्रभावित होगा।

जिस प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है उससे लगता है कि आने वाले समय में तापमान ज्यादा बढ़ेगा तथा मौसम चक्र भी बदल जाएगा। प्रकृति ने मानव को तमाम ऐसी वस्तुएं प्रदान की हैं जिनका उपयोग वह अपने लाभ के लिए करता है। तमाम पेड़-पौधे, जीव-जंतु ऐसे हैं को जो किसी न किसी रूप में मानव जीवन को फायदा पहुंचाते हैं। बता दें कि बुधवार को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर लोगों को प्राकृतिक स्त्रोतों को बचाने की संकल्प लेना चाहिए। वर्तमान में इंसान ने अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए आधुनिक उपकरणों का प्रयोग शुरू कर दिया है। जिससे जीवन शैली तो सरल हुई है परंतु कहीं न कहीं वह मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। आबादी भी तेजी के साथ बढ़ रही है। जिससे नए शहर व कस्बों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है तथा जंगल घट रहे हैं। पेड़ों का कटान होने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तथा ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है। यही कारण है कि तमाम जीव-जंतु व वनस्पति विलुप्त हो रही हैं। गौर करें तो डेढ़ दशक पहले तक गिद्ध काफी संख्या में दिखाई देते थे। गिद्ध को प्रकृति का सफाई कर्मी भी कहा जाता है। परंतु ग्लोबल वार्मिंग व बढ़ते प्रदूषण के चलते गिद्ध लगभग विलुप्त हो चुका है। यही स्थिति गौरेया की है। जबकि कौआ व कोयल की प्रजाति भी विलुप्त होने के कगार पर है। जंगलों के कटने से चीता, शेर व अन्य जंगली जानवर भी केवल चिड़ियाघर तक ही सिमट कर रह गए हैं। इसके अलावा तमाम औषधीय पौधे व घास भी विलुप्त होने के कगार पर है। नदी-नहरों में डाला जाने वाला प्रदूषित पानी जहर घोल रहा है तथा पानी में रहने वाले जीव-जंतु मछली, मगरमच्छ आदि का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। यदि तापमान इसी तेजी से बढ़ता रहा तो ग्लेशियर पिघलेंगे तथा बाढ़ के रूप में मानव जीवन को प्रभावित करेंगे।

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। उसके परिणाम भी सबके सामने हैं। इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। जनसंख्या बढ़ने से यह संकट पैदा हो रहा है। प्रकृति के मित्र जीव-जंतु व वनस्पति खत्म हो रहे हैं। यह मानव जाति के लिए नुकसानदायक है। यदि लोगों ने विलासिता का जीवन छोड़कर प्रकृति को साथी नहीं बनाया तो आने वाला समय ठीक नहीं है। पेड़-पौधों की रक्षा करना व प्राकृतिक स्त्रोतों के उपभोग करने की आदत डालनी होगी।

विलुप्त होते जीव-जंतुओं का वातावरण पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसमें वातावरण में होने वाली खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। उदाहरण के तौर पर देखें कि गिद्ध जोकि वातावरण के लिए एक सफाई कर्मी है। एकदम विलुप्त हो चुका है तथा गौरेया भी विलुप्त होने के कगार पर है। यह सब पर्यावरण प्रदूषण के कारण हो रहा है। लिहाजा हमें विलुप्त हो रहे जीव-जंतुओं को बचाने का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही इनके लिए पर्याप्त वातावरण तैयार करना चाहिए। ताकि खुद मानव जीवन खतरे में पड़ने से बचाया जा सके।

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए हम लोग खुद जिम्मेदार हैं। जिस प्रकार से तेजी के साथ पेड़ों का कटान हो रहा है उससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है। वह न सिर्फ मानव जीवन को प्रभावित कर रहा है बल्कि जीव-जंतु भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। मानव के मित्र कहे जाने वाले तमाम जीव-जंतु विलुप्त हो रहे हैं। वनस्पति भी खत्म हो रही है। लिहाजा लोगों को पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आना चाहिए।

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Answered by aaronbisht
1

Answer:
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Explanation:


जिस प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है उससे लगता है कि आने वाले समय में तापमान ज्यादा बढ़ेगा तथा मौसम चक्र भी बदल जाएगा। प्रकृति ने मानव को तमाम ऐसी वस्तुएं प्रदान की हैं जिनका उपयोग वह अपने लाभ के लिए करता है। तमाम पेड़-पौधे, जीव-जंतु ऐसे हैं को जो किसी न किसी रूप में मानव जीवन को फायदा पहुंचाते हैं। बता दें कि बुधवार को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर लोगों को प्राकृतिक स्त्रोतों को बचाने की संकल्प लेना चाहिए। वर्तमान में इंसान ने अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए आधुनिक उपकरणों का प्रयोग शुरू कर दिया है। जिससे जीवन शैली तो सरल हुई है परंतु कहीं न कहीं वह मानव जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। आबादी भी तेजी के साथ बढ़ रही है। जिससे नए शहर व कस्बों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है तथा जंगल घट रहे हैं। पेड़ों का कटान होने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तथा ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है। यही कारण है कि तमाम जीव-जंतु व वनस्पति विलुप्त हो रही हैं। गौर करें तो डेढ़ दशक पहले तक गिद्ध काफी संख्या में दिखाई देते थे। गिद्ध को प्रकृति का सफाई कर्मी भी कहा जाता है। परंतु ग्लोबल वार्मिंग व बढ़ते प्रदूषण के चलते गिद्ध लगभग विलुप्त हो चुका है। यही स्थिति गौरेया की है। जबकि कौआ व कोयल की प्रजाति भी विलुप्त होने के कगार पर है। जंगलों के कटने से चीता, शेर व अन्य जंगली जानवर भी केवल चिड़ियाघर तक ही सिमट कर रह गए हैं। इसके अलावा तमाम औषधीय पौधे व घास भी विलुप्त होने के कगार पर है। नदी-नहरों में डाला जाने वाला प्रदूषित पानी जहर घोल रहा है तथा पानी में रहने वाले जीव-जंतु मछली, मगरमच्छ आदि का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। यदि तापमान इसी तेजी से बढ़ता रहा तो ग्लेशियर पिघलेंगे तथा बाढ़ के रूप में मानव जीवन को प्रभावित करेंगे।

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