Hindi, asked by pandurangshelar76, 3 months ago

मनुष्य के विविध स्वभाव, गुण कब आने लगते हैं?​

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Answered by singhsahib00856
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Answered by kumarimanisha8219
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हर मनुष्य का अपना-अपना व्यक्तित्व है। वही मनुष्य की पहचान है। कोटि-कोटि मनु्ष्यों की भीड़ में भी वह अपने निराले व्यक्तित्व के कारण पहचान लिया जाएगा। यही उसकी विशेषता है। यही उसका व्यक्तित्व है। प्रकृति का यह नियम है कि एक मनुष्य की आकृति दूसरे से भिन्न है। आकृति का यह जन्मजात भेद आकृति तक ही सीमित नहीं है; उसके स्वभाव, संस्कार और उसकी प्रवृत्तियों में भी वही असमानता रहती है।

इस असमानता में ही सृष्टि का सौन्दर्य है। प्रकृति हर पल अपने को नये रूप में सजाती है। हम इस प्रतिपल होनेवाले परिवर्तन को उसी तरह नहीं देख सकते जिस तरह हम एक गुलाब के फूल में और दूसरे में कोई अन्तर नहीं कर सकते। परिचित वस्तुओं में ही हम इस भेद की पहचान आसानी से कर सकते हैं। परिचित वस्तुओं में ही हम इस भेद की पहचान आसानी से कर सकते हैं। यह हमारी दृष्टि का दोष है कि हमारी आंखें सूक्ष्म भेद को और प्रकृति के सूक्ष्म परिवर्तनों को नहीं परख पातीं।

मनुष्य-चरित्र को परखना भी बड़ा कठिन कार्य है, किन्तु असम्भव नहीं है। कठिन वह केवल इसलिए नहीं है कि उसमें विविध तत्त्वों का मिश्रण है बल्कि इसलिए भी है कि नित्य नई परिस्थितियों के आघात-प्रतिघात से वह बदलता रहता है। वह चेतन वस्तु है। परिवर्तन उसका स्वभाव है। प्रयोगशाला की परीक्षण नली में रखकर उसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। उसके विश्लेषण का प्रयत्न सदियों से हो रहा है। हजारों वर्ष पहले हमारे विचारकों ने उसका विश्लेषण किया था। आज के मनोवैज्ञानिक भी इसी में लगे हुए हैं। फिर भी यह नहीं कह सकते कि मनुष्य-चरित्र का कोई भी संतोषजनक विश्लेषण हो सका है।

हर बालक अनगढ़ पत्थर की तरह है जिसमें सुन्दर मूर्ति छिपी है, जिसे शिल्पी की आँख देख पाती है। वह उसे तराश कर सुन्दर मूर्ति में बदल सकता है। क्योंकि मूर्ति पहले से ही पत्थर में मौजूद होती है शिल्पी तो बस उस फालतू पत्थर को जिसमें मूर्ति ढकी होती है, एक तरफ कर देता है और सुन्दर मूर्ति प्रकट हो जाती है। माता-पिता शिक्षक और समाज बालक को इसी प्रकार सँवार कर खूबसूरत व्यक्तित्व प्रदान करते हैं।

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