३९ मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है? *
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।
कह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एकIकह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एक॥
इनमे से कोई नही
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hiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii
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