मनुष्य मात्र बंधु है से क्या समझते है।
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कवि के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में मानवता के रूप में ईश्वर बसे है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का अंश है। प्रत्येक मनुष्य उस परमपिता भगवान की संतान हैं तथा एक पिता की संतान होने के नाते सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई-बहन के समान हैं। इसलिए हमें छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, रंग-रूप, जाति, अमीर-गरीब आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। मनुष्यों की सहायता स्वयं मनुष्य ही करता है। मनुष्यों ने स्वयं ही जाति-पाँति, छुआछूत जैसी असमानताएँ समाज में पैदा की हैं| अतः हमें भेदभावों को भुलाकर प्रेम, भाईचारे और उदारता से रहना चाहिए। जिस प्रकार हम अपने भाई-बंधुओं का अहित नहीं करते, ठीक उसी तरह हमें विश्व में किसी का अहित न कर समाज के अन्य लोगों को भाई समान मानना चाहिए और एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए। अहंकार वृत्ति का परित्याग करना चाहिए। अगर ईश्वर ने सुख-साधन, धन संपत्ति दिए हैं तो हमें उन पर गर्व नहीं करना चाहिए।
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'मनुष्य मात्र बंधु' का अर्थ है कि सभी मनुष्य आपस में भाई बंधु हैं क्योंकि सभी का पिता एक ईश्वर है
Explanation:
पंक्ति से अर्थ भाईचारे कि भावना से है। 'मनुष्य मात्र बंधु' का अर्थ है कि सभी मनुष्य आपस में भाई बंधु हैं क्योंकि सभी का पिता एक ईश्वर है। हम सभी एक ही पिता परमेश्वर कि संताने हैं इसलिए हम सभी को प्रेम भाव से रहना चाहिए तथा दुसरों की मदद करनी चाहिए। कोई पराया नहीं है। सभी एक दूसरे के काम आएँ। कर्मों के कारण ऊँच -नीच, गरीब- अमीर के भेद तो हो सकते हैं परन्तु मूल रूप से हम एक ही हैं ।
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