Hindi, asked by jahwknabajshshve, 6 hours ago

मनुष्य ने प्रकृति एवम जीवजगत पर पैर रखकर प्रगति की है, आज उनकी समस्या कल हमारी होगी। अपने विचार व्यक्त कीजिए।​

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Answered by MohammadFazil123
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मनुष्य और प्रकृति का साथ सहअस्तित्व का है। जल जंगल, खनिज, वायु आदि हमारे लिए प्राकृतिक उपहार है। मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता जब तक अपनी जरूरत को पूरा करने भर का था तब तक सब ठीक चलता रहा। लेकिन विकास की चरम भूख और उपभोग की असीमित पिपासा ने प्रकृति को तबाह कर दिया है। नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर पानी को रोका गया। पहाड़ों से पत्थर निकालने के लिए डाइनामाइट से विस्फोट कराया गया। जंगलों को काटकर कंक्रीट के जंगल उगाए गए।

उद्योगों से निकलने वाले धुआँ से वायुमण्डल विषाक्त हो गया। विश्व भर में उत्सर्जित होने वाले गैस,धुआँ और खनन से वैश्विक तापमान बढ़ता गया। शुरू में तो विकसित देशों ने समझा की इसका दुष्परिणाम रोकने के लिए हम कोई-न-कोई काट खोज लेंगे। लेकिन आज की तारीख तक वे असफल ही रहे हैं। लेकिन सबसे आश्चर्य एवं दुख की बात यह है कि भारत में अभी भी पर्यावरण, वैश्विक तापमान और मानवाधिकार जैसे मुद्दे अकादमिक जगत तक ही सीमित है।

अभी तक आम आदमी इसके प्रति जागरूक करने की जितनी पहल की जानी चाहिए थी वह नहीं हो रहा है। देश का जनमानस इसके दुष्प्रभाव को समझने से वंचित है।

आज मानव का प्रकृति पर विजय की कामना अधूरी ही साबित हो रही है। ज्ञान-विज्ञान की तमाम प्रगति और अविष्कारों ने प्रकृति और ब्रहमाण्ड का केवल कुछ प्रतिशत जानकारी ही हासिल कर सकता है। कुछ फीसदी जानकारी प्राप्त करके ही वह प्रकृति पर नियन्त्रण करने का सपना देखने लगा। यह सपना उसके लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज के विश्व के सामने बड़ी चुनौती बनके उभरी है। प्रकृति मानव की सीमा बताते हुए उसे सम्भलने का सन्देश दे रही है। वैश्विक तापमान से न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी परेशान है। वैश्विक तापमान से निपटने के लिए दुनिया भर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूँकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं सम्भलें तो भविष्य और भी भयावह हो सकता है।

वैश्विक तापमान के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मनुष्य और उसकी गतिविधियाँ हैं। अपने को इस धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य जानबूझकर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार रहा है। मनुष्य निर्मित इन गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है।

मोटर-कार,रेलगाड़ी, हवाई जहाजों, बिजली घर और उद्योगों से अन्धाधुन्ध होने वाले गैसीय उत्सर्जन की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। रेफ्रीजरेटर्स और अग्निशामक यन्त्रों में इस्तेमाल की जाने वाली सीएफसी भी एक वजह है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर पहुँच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि ध्रुवों पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। दुनिया भर के बढ़ते हुए तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है और गंगोत्री जैसे बड़े ग्लेशियर अगले बीस-तीस वर्षों में समाप्त हो सकते हैं।

ये आशंकाएँ एकबारगी तो फिल्मी कहानी जैसी लगती है लेकिन गंगोत्री ग्लेशियर के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह असम्भव नहीं है। उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्य में सैकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे पनबिजली परियोजनाएँ चल रही हैं। जो पहाड़ के पारिस्थितिकी तन्त्र को तबाह करने के लिए काफी है। एक आँकड़े पर विश्वास करें तो यह मालुम होता है कि, पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है।

आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। इससे हमारे देश को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वैश्विक तापमान से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लेशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी।

समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय इलाकों में रहने वाले अधिकांश लोग बेघर हो जाएँगे। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।

गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर जैसे संक्रामक रोग बढ़ेंगे। इसका पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।

पिछले दिनों पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर एक रिपोर्ट जारी किया था। जिसमें यह बताया गया था कि यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना इसी प्रकार जारी रहा तो आगामी वर्षों में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। पहाड़, मैदानी, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग के कहर का शिकार होंगे।

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