Hindi, asked by poojamishra903943355, 5 hours ago

मनुष्य और प्रकृति के बीच में संवाद​

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Answered by shaikhnayum310
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Answer:

मानव और प्रकृति के बीच आज छिड़ा है संवाद।मानव विचलित होकर करता प्रकृति से वार्तालाप।

मानव: हे प्रकृति तू तो पहली गुरु है।तू

क्यों करती अत्याचार?

प्रकृति: वाह रे मानव तेरा अंदाज़

क्या सुनाया तूने आज?शर्म

तुम्हें ज़रा न आई।

मानव: क्या किया मैंने ओ माता?तेरी

बात मैं समझ न पाता।

प्रकृति: नष्ट किया मेरे अस्तित्व को,मेरी

अस्मिता को लूटा। करनी ये

तेरी अपनी है,गलती की सज़ा

तो ओ मानव जाति तुझको

ही भुगतनी है।

(सुन प्रकृति की ऐसी वाणी,मानव थोड़ा घबराया।बुद्धि बल जो मिला प्रभु से उसको तुरन्त उसने लगाया।)

मानव: सुन प्रकृति तू मेरी विनती तू ही

तू है गुरु और मैया।मेरा

कष्ट तू अब हर दे,मेरा मार्ग

प्रदर्शित कर दे।

प्रकृति: ओ रे मेरे पूत निराले,प्यारे

लगते बोल तिहारे।कर ले प्रण

तू अद्भुत प्राणी,प्रकृति संग

खिलवाड़ न करना।ज्ञान का

सागर मुझमें बसता माने गर

तू मुझको मैया,तो तू ही

संभाल पतवार और नैया।

मानव: धन्यवाद ओ प्रकृति गुरु माँ,

पथ-प्रदर्शित कर,मान बढ़ाया।

हूँ शर्मिंदा अपनी करनी पर,

तेरा दर्द समझ न पाया।तेरी

महिमा का वर्णन क्या करूँ?

ज्ञान का दीप तुझसे ही पाया,

मदान्ध हो अभिमान के

कारण, ज्ञान का महत्त्व समझ

न पाया। वादा करता हूँ मैं

तुमसे आंच न अब मैं आने

दूँगा, तेरी अस्मिता की

ख़ातिर अब अपना सब कुछ

अर्पित कर दूंगा।

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