मनुष्य और पशु में यविद कोई अंतर ै तो य विक पशु परवित की भाना से शून्य ोता ै | मनुष्य पशु के समान ै
जिजसका हृदय दसरों ू को देख कर द्रवित नी ोता | ईश्वर को े ी लोग सबसे अधि#क विप्रय ोते ै जो मान जाधित
की सेा करते ै तथा मान मात्र से प्यार करते ै | भारतीय संस्कृधित मे तो परोपकार को बुत मत् विदया गया ै |
इसके अनुसार मनुष्य जो भी काय
करे उसका उद्देश 'बुजन विताय' अथा
त बुतो के वित के लिलये ोना चाविये |
व्यास जी का कथन ै विक दसरों ू का भला सबसे बडा पुण्य ै और दसरों ू को कष्ट पुँचाना सबसे बडा पाप |
1. मनुष्य और पशु मे मूलभूत अंतर क्या ोता ै ?
(i) पशु परवित की भाना से शून्य ोता ै |
(ii) मनुष्य परवित की भाना से शून्य ोता ै |
(iii) मनुष्य के सभी काय
बुजन विताय ोते ै |
(iv) उपरोक्त सभी |
2. विकस प्रकार का मनुष्य पशु - तुल्य ोता ै ?
(i) जो मान जाधित की सेा नीं करते |
(ii) जो दसरों ू का भला नीं चाते |
(iii) जिजसका हृदय दसरों ू को देखकर द्रवित नीं ोता |
(iv) उपरोक्त सभी |
3. ईश्वर विकस प्रकार के लोगो को सबसे अधि#क प्यार करता ै ?
(i) जो मान जाधित की सेा करते ै |
(ii) जो मान मात्र से प्यार करते ै |
(iii) उपरोक्त दोनो |
(iv) कोई नी
4. व्यास जी के अनुसार सबसे बडा पुण्य और सबसे बडा पाप क्या ै ?
(i) बुजन विताय, बुजन दखाय ु |
(ii) मान मात्र की सेा और ईश्वर की भविक्त न करना(iii) दसरों ू का भला सबसे बडा पुण्य और दसरों को कष्ट प ू ुंचाना सबसे बडा पाप ै |
(iv) उपरोक्त कोई नी |
5. गद्यांश का उधिचत शी
क ोगा -
(i) मनुष्य और पशु
(ii) बुजन विताय
(iii) मान मात्र की सेा
(iv) इनमें मे से कोई नी
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innaaaaaa bada ques☺☺hame nhi aata
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Hello Khusi
Explanation:
Nikhil Yadav here, how are you, for giving answer like
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