मनुष्य और sarp Kavita ki vyakhya
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संसार कहेगा, जीवन का सब सुकृत कर्ण ने क्षार किया ; प्रतिभट के वध के लिए सर्प का पापी ने साहाय्य लिया . हे अश्वसेन ! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी, सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुर-ग्राम-घरों में भी . ये नर-भुजङग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं, प्रतिबल के वध के लिए नीच साहाय्य सर्प का लेते हैं .
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