मनुष्य पक्षियों की तरह क्यों नहीं उड़ सकते ?
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क्यों नहीं उड़सकते ? विमान में बैठ के तो उड़ ही रहे हैं ! अगर विमान की तरह हमारे भी पंख होते तो उड़ सकते थे.उड़ने के लिए उछाल चाहिए. हम कूद कर उछल तो ले लेते हैं लेकिन उसको बरकरार नही रख पाते. चिड़ियाएँ भी फुदक कर उछल लेती हैं और फिर पंखों को ऊपर नीचे हिला कर सतत उछाल बनाए रखती हैं.
उड़ने वाली चिड़ियाओं के वज़न से , जब उनका, पंखों द्वारा बनाया गया उछाल अधिक हो जाता है तब वह उठ जाती हैं और पंखों को दिशा निर्देश देते हुए दाहिने बाएं भी मुड़ती हैं . विमान में उड़ाने का काम पंख करते हैं और दाहिने बाएं जाने का काम ‘एलिरोन’ तथा ‘रडर’ करते हैं. ‘रडर’ मछलियों में भी पीछे की पूंछ को दाहिने बाएं करके, मुड़ने की दिशा निर्देशित करता है.
इंसान का शरीर साधारनतया ५० किलो से ७० किलो का होता है. इतना बड़ा भार तो हम साधारण लोग हाथ से भी नही उठा पाते! फिर अगर हम कृत्रिम पंख लगा भी लें तो हाथों पर लगें पंखों को ५०/७० किलो का भार उठाने में और उठाये रखने में,छठी का दूध याद आजायेगा.हाँ, मशीनों की मदद से पंख लगा कर मनुष्य ज़रूर उड़े हैं लेकिन जब हमारी बनावट, कद काठी ही उड़ने वाली नही है तो कहाँ से उड़ेंगे ?
परियों की कहानी में हमने पंखों वाली परी ही देखी है, बिना पंख के कैसे उड़ें ?
याद है वह पुराना गाना:-
“पंख होते तो उड़ आती मैं, रसिया ! हो बालमा !
तुझे दिल का हाल बतलाती मै, रसिया ओ बालमा !”
लगता है कि इश्क में बेताब दिल ही ऎसी बातें सोचता है कि कैसे मिलें? या फिर सरफिरा वैज्ञानिक ?मैं भी अपने ज़माने में ऐसा सोचता था, अब हँसी आती है…
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