मनुष्य स्वयं को क्या समझता है
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आदमी खुद के लिए अपने स्तर की दुनिया अपने हाथों खुद रचता बुनता है। जिस घोसलें में वह रहता है अपनी जिंदगी बिताता है उसकी निजी जिंदगी में किसी अन्य दूसरे का हस्तक्षेप नहीं रहता है। मनुष्य के जीवन में दुनिया की अड़चनें और सुविधाएं तो धूप छाँव की तरह आती और जाती हैं और उनकी परवाह किये वगैर कोई भी राहगीर लगातार अपने मार्ग पर चल सकता है।
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घोड़ों का भंडार
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