Hindi, asked by rathorerudrapratapsi, 2 months ago

मनुष्य दुर्गम स्थानों पर निर्गुण निराकार परमात्मा को ढूंढता है। उपचार में प्रयोग करके अंडरलाइन कीजिए।​

Answers

Answered by shreelatabhujel
1

Explanation:

अवतार ईश्वर

इस सृष्टि में जब धर्म की हानि हानि होती है, पापाचार, अधर्म, अनाचार जैसे दुष्टों का बोलबाला बढ़ता है एवं साधु सन्तों, ऋषियों , सज्जनों के उद्धार लिए उन पर हो रहे अत्याचारों को खत्म करने के लिए तब-तब ईश्वर धर्म की स्थापना करने और धरती से दुष्टों का संहार करने के लिए चाहे श्रीराम हो, श्रीकृष्ण हो, श्री वानम, नरसिंह, वराह या कश्यप अवतार हो के रूप में अवतार लेते हैं, इस धरा धाम को पापियों से मुक्त कर धर्म की स्थापना करते हैं।

राम चरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं कि-

जब-जब होई धरम के हानि....!

बढहिं अधम असुर अमिभानी...!!

तब-तब प्रभु धर विविध शरीरा...!

हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा......!!

और इसी अवतार परंपरा के बारे स्वयं गीताकार योगेश्वर ने गीता में कहा कि-

Answered by Anonymous
0

ताजा खबरें

बड़ी खबरें

कोरोना वायरस

मध्यप्रदेश

छत्तीसगढ़

प्रदेश

देश

विदेश

खेल

मनोरंजन

बिज़नेस

टेक्नोलॉजी

धर्म

राशिफल

विचार

शिक्षा

नईदुनिया विशेष

swiper icon

होम ⁄ छत्तीसगढ़ ⁄ जांजगीर चांपा

निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं

Updated: | Tue, 26 Nov 2019 09:53 AM (IST)

Subscribe to Latest News

शिवरीनारायण। नईदुनिया न्यूज। निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है यह बातें निकुंज आश्रम श्रीधाम अयोध्या के जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी रामकृष्णाचार्य महाराज ने शिवरीनारायण मठ महोत्सव में तीसरे दिवस की रामकथा में कही।

व्यासपीठ से आचार्य ने कहा कि जिन्हें कुछ भी नहीं आता वही कहते हैं कि ब्रह्म राम और दशरथ के बेटे राम अलग-अलग हैं। एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घर घर में लेटा वस्तुतः जो दशरथ नंदन है वही व्यापक घट-घट वासी राम है, जो निर्गुण ब्रह्म है वही सगुण होते हैं, निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है। निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है। जिससे आकार निकलता हो उसे ही निराकार कहते हैं जब निराकार परमात्मा राम, कृष्ण, वामन भगवान आदि रूप में निराकार से कोई साकार रूप धारण कर प्रकट होता है, वही साकार है। पानी की द्रवीभूत अवस्था जल है और घनीभूत अवस्था बर्फ है। जल को जिस आकार के पात्र में रख दें वह घनीभूत होकर वही आकार धारण करता है इसके लिए उसमें अलग से किसी अन्य तत्व को मिलाने की आवश्यकता नहीं होती। धर्म की स्थापना ही भगवान के अवतार के मूल कारण है। भगवान के दो द्वारपाल हैं जय और विजय, यदि हमें ईश्वर तक पहुँचना है तो अपने इंद्रिय पर जय और मन पर विजय करना होगा जय और विजय तीनों जन्म में राजा बने। एक बात साफ है कि आप एक बार भगवान के हो गए तो यदि आप का पतन भी हो जाए तो भी आप ऊंचाई पर ही रहेंगे। व्यक्ति समाज में रावण कैसे बनता है। समाज में जब उसे उधा पद प्राप्त हो जाता है तो उसका अभिमान जागृत हो जाता है अभिमान ही मनुष्य को रावण बना देता है जय और विजय भगवान के द्वारपाल के पद की प्राप्ति के पश्चात इतने मदमस्त हो गए कि इन्होंने सप्त ऋषियों को भगवान से मिलने से रोका और श्राप से राक्षस हुए । भगवान तक कोई वस्तु यदि पहुंचाना है तो दो ही स्थान है एक अग्नि दूसरा ब्राह्मण। अग्नि में हवन से और ब्राह्मण को भोजन कराने से भगवान प्रसन्ना हो जाते हैं। पत्नी पतिव्रता हो तो उसके धर्म के आड़ पर आप को अधर्म नहीं करना चाहिए। उपासना की आड़ में वासना को जागृत ना होने दें। राम ने कभी भी अधर्म को मिटाने के लिए अधर्म का आश्रय नहीं लिया जबकि द्वापर में कृष्ण ने अधर्म को अधर्म का सहारा लेकर मिटाया। कथा प्रभु प्रेम में डूबा दें तभी वह कथा है, ध्यान रखना यह आनंद प्राप्ति का साधन मात्र नहीं है। उन्होंने कहा कि नारद एक बार कैलाश पर्वत क्षेत्र से गुजर रहे थे। वातावरण को देखकर उनके मन में भजन करने की इच्छा जागृत हुई। हमें व्यक्ति के निर्माण के स्थान पर वातावरण का निर्माण करना चाहिए व्यक्ति त्व का निर्माण तो स्वतः ही हो जाएगा। जीवन गृहस्थ और विरक्त दोनों का ही श्रेष्ठ है दोनों के अंतर को हम शहर के मार्ग की व्यवस्था से समझ सकते हैं। शहरों में दो तरह के मार्ग होते हैं एक बाजार से होकर गुजरता है दूसरा बाईपास सड़क हुआ करता है। जो बाजार से होकर गुजरे वह गृहस्थ है और जो बाईपास से गुजर जाए वह विरक्त है। गृहस्थ नहीं होंगे तो विरक्त संत आएंगे कहां से और यदि समाज में संत नहीं होंगे तो संसार को दीक्षा कौन दे पाएगा। संसार की सृष्टि के लिए दोनों ही आवश्यक हैं जीवन में यदि बनना है तो राम का ही बन जाना काम आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। कथा श्रवण करने सन्त महात्मा एवं श्रोता गण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Similar questions